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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 20
    ऋषिः - वत्स ऋषिः देवता - वाग्विद्युतौ देवते छन्दः - साम्नी जगती,भूरिक् आर्षी उष्णिक् स्वरः - निषादः
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    अनु॑ त्वा मा॒ता म॑न्यता॒मनु॑ पि॒ताऽनु भ्राता॒ सग॒र्भ्योऽनु॒ सखा॒ सयू॑थ्यः। सा दे॑वि दे॒वमच्छे॒हीन्द्रा॑य॒ सोम॑ꣳ रु॒द्रस्त्वा॑वर्त्तयत् स्वस्ति सोम॑सखा॒ पुन॒रेहि॑॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑। त्वा॒। मा॒ता। म॒न्य॒ता॒म्। अनु॑। पि॒ता। अनु॑। भ्राता॑। सग॑र्भ्य॒ इति॒ सऽग॑र्भ्यः। अनु॑। सखा॑। सयू॑थ्य॒ इति॒ सऽयू॑थ्यः। सा। दे॒वि॒। दे॒वम्। अच्छ॑। इ॒हि॒। इन्द्रा॑य। सोम॑म्। रु॒द्रः। त्वा॒। आ। व॒र्त्त॒य॒तु॒। स्व॒स्ति॑। सोम॑स॒खेति॒ सोम॑ऽसखा। पुनः॑। आ। इ॒हिः॒ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनु त्वा माता मन्यतामनु पितानु भ्राता सगर्भ्या नु सखा सयूथ्यः । सा देवि देवमच्छेहीन्द्राय सोमँ रुद्रस्त्वा वर्तयतु स्वस्ति सोमसखा पुनरेहि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अनु। त्वा। माता। मन्यताम्। अनु। पिता। अनु। भ्राता। सगर्भ्य इति सऽगर्भ्यः। अनु। सखा। सयूथ्य इति सऽयूथ्यः। सा। देवि। देवम्। अच्छ। इहि। इन्द्राय। सोमम्। रुद्रः। त्वा। आ। वर्त्तयतु। स्वस्ति। सोमसखेति सोमऽसखा। पुनः। आ। इहिः॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 20
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    भावार्थ - या मंत्रात वाचक लुप्तोपमालंकार आहे. प्रश्न ः माणसांनी परस्पर वर्तन कसे करावे? उत्तर ः जसे धर्मात्मा, विद्वान, माता, पिता, बंधू, मित्र इत्यादी सत्य व्यवहाराने वागतात तसेच पुत्र इत्यादींनीही वागावे व विद्वान धार्मिक पुत्र जसा धार्मिक व्यवहार करतो तसे माता व पिता यांनीही वागावे.

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