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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - इन्द्रवायू देवते छन्दः - आर्षी गायत्री,आर्षी स्वराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    इन्द्र॑वायूऽइ॒मे सु॒ताऽउप॒ प्रयो॑भि॒राग॑तम्। इन्द॑वो वामु॒शन्ति॒ हि। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि वा॒यव॑ऽइन्द्रवा॒युभ्यां॑ त्वै॒ष ते॒ योनिः॑ स॒जोषो॑भ्यां त्वा॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑वायू॒ इ॒तीन्द्र॑ऽवायू। इ॒मे। सु॒ताः। उप॒ प्रयो॑भि॒रिति॒ प्रयः॑ऽभिः। आ॑गत॒म्। इन्द॑वः। वा॒म्। उ॒शन्ति॑। हि। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। वा॒यवे॑। इ॒न्द्रवा॒युभ्या॒मिती॑न्द्रवा॒युऽभ्या॑म्। त्वा॒। ए॒षः। ते। योनिः॑। स॒जोषो॑भ्यामिति॑ स॒जोषः॑ऽभ्याम्। त्वा॒ ॥८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रवायू इमे सुताऽउप प्रयोभिरागतम् इन्दवो वामुशन्ति हि उपयामगृहीतो सि वायव इन्द्रवायुभ्यात्वैष ते योनिः सजोषेभ्यां त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रवायू इतीन्द्रऽवायू। इमे। सुताः। उप प्रयोभिरिति प्रयःऽभिः। आगतम्। इन्दवः। वाम्। उशन्ति। हि। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। वायवे। इन्द्रवायुभ्यामितीन्द्रवायुऽभ्याम्। त्वा। एषः। ते। योनिः। सजोषोभ्यामिति सजोषःऽभ्याम्। त्वा॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 8
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    भावार्थ - योगाभ्यास करून ईश्वरापासून पृथ्वीपर्यंत सर्व पदार्थांचा साक्षात्कार करण्याचा प्रयत्न करणारे लोकच पूर्ण योगी व सिद्ध बनतात. यमनियम इत्यादी साधनांद्वारे ते योगात रमतात व जे लोक अशा योग्याजवळ असतात त्यांनाही योगसिद्धी प्राप्त होते. इतरांना ती प्राप्त होत नाही.

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