Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 45

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 45/ मन्त्र 8
    सूक्त - भृगुः देवता - आञ्जनम् छन्दः - एकावसाना निचृन्महाबृहती सूक्तम् - आञ्जन सूक्त

    सोमो॑ मा॒ सौम्ये॑नावतु प्रा॒णाया॑पा॒नायायु॑षे॒ वर्च॑स॒ ओज॑से तेज॑से स्व॒स्तये॑ सुभू॒तये॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑। मा॒। सौम्ये॑न। अ॒व॒तु॒। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। आयु॑षे। वर्च॑से। ओज॑से। तेज॑से। स्व॒स्तये॑। सु॒ऽभू॒तये॑। स्वाहा॑ ॥४५.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो मा सौम्येनावतु प्राणायापानायायुषे वर्चस ओजसे तेजसे स्वस्तये सुभूतये स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः। मा। सौम्येन। अवतु। प्राणाय। अपानाय। आयुषे। वर्चसे। ओजसे। तेजसे। स्वस्तये। सुऽभूतये। स्वाहा ॥४५.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 45; मन्त्र » 8

    Translation -
    May the blissful Lord preserve me with bliss for in-breath. for out-breath, for long life, for lustre, for vigour, for majesty, for weal, for good prosperity. Svaha.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top