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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 21
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - राजेश्वरौ देवते छन्दः - भुरिगत्यष्टिः स्वरः - गान्धारः
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    अ॒ग्नये॒ पीवा॑नं पृथि॒व्यै पी॑ठस॒र्पिणं॑ वा॒यवे॑ चाण्डा॒लम॒न्तरि॑क्षाय वꣳशन॒र्तिनं॑ दि॒वे ख॑ल॒तिꣳ सूर्या॑य हर्य॒क्षं नक्ष॑त्रेभ्यः किर्मि॒रं च॒न्द्रम॑से कि॒लास॒मह्ने॑ शु॒क्लं पि॑ङ्गा॒क्षꣳ रात्र्यै॑ कृ॒ष्णं पि॑ङ्गा॒क्षम्॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नये॑। पीवा॑नम्। पृ॒थि॒व्यै। पी॒ठ॒स॒र्पिण॒मिति॑ पीठऽस॒र्पिण॑म्। वा॒यवे॑। चा॒ण्डा॒लम्। अ॒न्तरि॑क्षाय। व॒ꣳश॒ऽन॒र्त्तिन॒मिति॑ वꣳशऽन॒र्त्तिन॑म्। दि॒वे। ख॒ल॒तिम्। सूर्य्या॑य। ह॒र्य॒क्षमिति॑ हरिऽअ॒क्षम्। नक्ष॑त्रेभ्यः। कि॒र्मि॒रम्। च॒न्द्रम॑से। कि॒लास॑म्। अह्ने॑। शु॒क्लम्। पि॒ङ्गा॒क्षमिति॑ पिङ्गऽअ॒क्षम्। रात्र्यै॑। कृ॒ष्णम्। पिङ्गा॒क्षमिति॑ पिङ्गऽअ॒क्षम् ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नये पीवानम्पृथिव्यै पीठसर्पिणँ वायवे चाण्डालमन्तरिक्षाय वँशनर्तिनन्दिवे खलतिँ सूर्याय हर्यक्षन्नक्षत्रेभ्यः किर्मिरञ्चन्द्रमसे किलासमह्ने शुक्लम्पिङ्गाक्षँ रात्र्यै कृष्णम्पिङ्गाक्षम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नये। पीवानम्। पृथिव्यै। पीठसर्पिणमिति पीठऽसर्पिणम्। वायवे। चाण्डालम्। अन्तरिक्षाय। वꣳशऽनर्त्तिनमिति वꣳशऽनर्त्तिनम्। दिवे। खलतिम्। सूर्य्याय। हर्यक्षमिति हरिऽअक्षम्। नक्षत्रेभ्यः। किर्मिरम्। चन्द्रमसे। किलासम्। अह्ने। शुक्लम्। पिङ्गाक्षमिति पिङ्गऽअक्षम्। रात्र्यै। कृष्णम्। पिङ्गाक्षमिति पिङ्गऽअक्षम्॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে পরমেশ্বর বা রাজন্! (আপনি (অগ্নায়ে) অগ্নির জন্য (পীবানম্) স্থূল পদার্থকে (পৃথিব্যৈ) পৃথিবীর জন্য (পীঠসর্পিণম্) বিনা পদে সর্পিল গতিসম্পন্ন সর্পাদিকে (অন্তরিক্ষায়) আকাশ ও পৃথিবীর মধ্যে খেলিবার জন্য (বংশনর্ত্তিনম্) বংশ দ্বারা নর্ত্তনকারী নটাদিকে (সূর্য়ায়) সূর্য়্যের তাপ ও প্রকাশ পাওয়ার জন্য (হর্য়ক্ষং) বানরের সমান ক্ষুদ্র চক্ষুযুক্ত শীতপ্রায় দেশী মনুষ্যদিগকে (চন্দ্রমসে) চন্দ্রমা তুল্য আনন্দ প্রদান করিবার জন্য (কিলাসম্) অল্প শ্বেতবর্ণযুক্ত এবং (অহ্নে) দিনের জন্য (শুক্লম্) শুদ্ধ (পিঙ্গাক্ষম্) পীত চক্ষুসম্পন্নকে উৎপন্ন করুন । (বায়বে) বায়ুর স্পর্শ হেতু (চান্ডালম্) মেথরকে (দিবে) ক্রীড়ার জন্য প্রবৃত্ত (খলতিম্) কেশহীনকে (নক্ষত্রেভ্যঃ) রাজ্য-বিরোধ হেতু প্রবৃত্ত লোকদের জন্য (কির্মিরং) কর্বুর বর্ণকে এবং (রাত্র্যৈ) অন্ধকারের জন্য প্রবৃত্ত (কৃষ্ণম্) কৃষ্ণ বর্ণ যুক্ত (লিঙ্গাক্ষম্) পীত নেত্রযুক্ত পুরুষকে দূর করুন ॥ ২১ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–অগ্নি স্থূল পদার্থ দহন করিতে সক্ষম সূক্ষ্মকে নহে । পৃথিবীর উপর নিরন্তর সর্পাদি বিচরণ করে কিন্তু পক্ষী আদি নয় । মেথরের শরীরে আগত বায়ু দুর্গন্ধযুক্ত হওয়ার কারণে সেবন যোগ্য হয় না ইত্যাদি তাৎপর্য্য জানা উচিত ॥ ২১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - অ॒গ্নয়ে॒ পীবা॑নং পৃথি॒ব্যৈ পী॑ঠস॒র্পিণং॑ বা॒য়বে॑ চাণ্ডা॒লম॒ন্তরি॑ক্ষায় বꣳশন॒র্তিনং॑ দি॒বে খ॑ল॒তিꣳ সূর্য়া॑য় হর্য়॒ক্ষং নক্ষ॑ত্রেভ্যঃ কির্মি॒রং চ॒ন্দ্রম॑সে কি॒লাস॒মহ্নে॑ শু॒ক্লং পি॑ঙ্গা॒ক্ষꣳ রাত্র্যৈ॑ কৃ॒ষ্ণং পি॑ঙ্গা॒ক্ষম্ ॥ ২১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - অগ্নয় ইত্যস্য নারায়ণ ঋষিঃ । রাজেশ্বরৌ দেবতে । ভুরিগত্যষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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