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  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 14
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - द्यावापृथिवी देवते छन्दः - अतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः
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    इ॒षे पि॑न्वस्वो॒र्जे पि॑न्वस्व॒ ब्रह्म॑णे पिन्वस्व क्ष॒त्राय॑ पिन्वस्व॒ द्यावा॑पृथिवी॒भ्यां॑ पिन्वस्व।धर्मा॑सि सु॒धर्मामे॑न्य॒स्मे नृ॒म्णानि॑ धारय॒ ब्र॒ह्म॑ धारय क्ष॒त्रं धा॑रय॒ विशं॑ धारय॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒षे। पि॒न्व॒स्व॒। ऊ॒र्जे। पि॒न्व॒स्व॒। ब्रह्म॑णे। पि॒न्व॒स्व॒। क्ष॒त्राय॑। पि॒न्व॒स्व॒। द्यावा॑पृथि॒वीभ्या॑म्। पि॒न्व॒स्व॒ ॥ धर्म॑। अ॒सि॒। सु॒धर्मेति॑ सु॒ऽधर्म॑। अमे॑नि। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। नृ॒म्णानि॑। धा॒र॒य॒। ब्रह्म॑। धा॒र॒य॒। क्ष॒त्रम्। धा॒र॒य॒। विश॑म्। धा॒र॒य॒ ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इषे पिन्वस्वोर्जे पिन्वस्व ब्रह्मणे पिन्वस्व क्षत्राय पिन्वस्व द्यावापृथिवीभ्याम्पिन्वस्व । धर्मासि सुधर्मामेन्यस्मे नृम्णानि धारय ब्रह्म धारय क्षत्रन्धारय विशन्धारय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इषे। पिन्वस्व। ऊर्जे। पिन्वस्व। ब्रह्मणे। पिन्वस्व। क्षत्राय। पिन्वस्व। द्यावापृथिवीभ्याम्। पिन्वस्व॥ धर्म। असि। सुधर्मेति सुऽधर्म। अमेनि। अस्मेऽइत्यस्मे। नृम्णानि। धारय। ब्रह्म। धारय। क्षत्रम्। धारय। विशम्। धारय॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 14
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে (ধর্ম) সত্যের ধারক (সুধর্ম) সুন্দর ধর্মযুক্ত পুরুষ বা স্ত্রী ! তোমরা (অমেনি) হিংসা ধর্ম হইতে রহিত (অসি) আছো যদ্দ্বারা (অস্মে) আমাদের জন্য (নৃম্ণানি) ধনসমূহকে (ধারয়) ধারণ কর (ব্রহ্ম) বেদ বা ব্রাহ্মণকে (ধারয়) ধারণ কর (ক্ষত্রম্) ক্ষত্রিয় বা রাজ্যকে (ধারয়) ধারণ কর (বিশম্) প্রজাকে (ধারয়) ধারণ কর, তদ্দ্বারা (ইষে) অন্নাদি হেতু (পিন্বস্ব) সেবন কর (ঊর্জে) বলাদির জন্য (পিন্বস্ব) সেবন কর (ক্ষত্রায়) রাজ্য হেতু (পিন্বস্ব) সেবন কর এবং (দ্যাবাপৃথিবীভ্যাম্) ভূমিও সূর্য্যের জন্য (পিন্বস্ব) সেবন কর ॥ ১৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- যে সব স্ত্রী-পুরুষ অহিংসক ধর্মাত্মা হইয়া স্বয়ংই ধন, বিদ্যা, রাজ্য ও প্রজাকে ধারণ করিবে তাহারা অন্ন, বল, বিদ্যা ও রাজ্যকে প্রাপ্ত হইয়া ভূমিও সূর্য্য তুল্য প্রত্যক্ষ সুখযুক্ত হইবে ॥ ১৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ই॒ষে পি॑ন্বস্বো॒র্জে পি॑ন্বস্ব॒ ব্রহ্ম॑ণে পিন্বস্ব ক্ষ॒ত্রায়॑ পিন্বস্ব॒ দ্যাবা॑পৃথিবী॒ভ্যাং॑ পিন্বস্ব । ধর্মা॑সি সু॒ধর্মামে॑ন্য॒স্মে নৃ॒ম্ণানি॑ ধারয়॒ ব্র॒হ্ম॑ ধারয় ক্ষ॒ত্রং ধা॑রয়॒ বিশং॑ ধারয় ॥ ১৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ইষে পিন্বস্বেত্যস্য দীর্ঘতমা ঋষিঃ । দ্যাবাপৃথিবী দেবতে । অতিশক্বরী ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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