Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 161 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 161/ मन्त्र 3
    ऋषिः - यक्ष्मनाशनः प्राजापत्यः देवता - राजयक्ष्मघ्नम् छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स॒ह॒स्रा॒क्षेण॑ श॒तशा॑रदेन श॒तायु॑षा ह॒विषाहा॑र्षमेनम् । श॒तं यथे॒मं श॒रदो॒ नया॒तीन्द्रो॒ विश्व॑स्य दुरि॒तस्य॑ पा॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षेण॑ । श॒तऽशा॑रदेन । श॒तऽआ॑युषा । ह॒विषा॑ । आ । अ॒हा॒र्ष॒म् । ए॒न॒म् । श॒तम् । यथा॑ । इ॒मम् । श॒रदः॑ । नया॑ति । इन्द्रः॑ । विश्व॑स्य । दुः॒ऽइ॒तस्य॑ । पा॒रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्राक्षेण शतशारदेन शतायुषा हविषाहार्षमेनम् । शतं यथेमं शरदो नयातीन्द्रो विश्वस्य दुरितस्य पारम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽअक्षेण । शतऽशारदेन । शतऽआयुषा । हविषा । आ । अहार्षम् । एनम् । शतम् । यथा । इमम् । शरदः । नयाति । इन्द्रः । विश्वस्य । दुःऽइतस्य । पारम् ॥ १०.१६१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 161; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    [१] मैं (एनम्) = इस रुग्ण पुरुष को (हविषा) = हवि के द्वारा (आहार्षम्) = रोग से बाहिर ले आता हूँ । उस हवि के द्वारा जो कि (सहस्त्राक्षेण) = हजारों आँखोंवाली है, हजारों पुरुषों का ध्यान करती है, हजारों को रोग मुक्त करती है। शतशारदेन यह हवि हमें शतवर्ष पर्यन्त ले चलती है । (शतायुषा) = इस हवि के द्वारा हमारा शतवर्ष का आयुष्य क्रियामय बना रहता है [एति इति आयुः] । [२] मैं इसको हवि के द्वारा रोग से बाहिर लाता हूँ और इस प्रकार व्यवस्था करता हूँ (यथा) = जिससे (इमम्) = इस पुरुष को (इन्द्रः) = सूर्य (विश्वस्य दुरितस्य) = सब दुर्गतियों के (पारं नयाति) = पार ले जाता है। अग्नि और इन्द्र [सूर्य] मिलकर मनुष्य को सब कष्टों से दूर कर देते हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ - अग्निहोत्र में डाले गये हविर्द्रव्यों से हजारों पुरुषों का कल्याण होता है, ये उन्हें सौ वर्षों तक जीनेवाला बनाते हैं, उनके जीवन को क्रियामय रखते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top