ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
प्र मा॑ युयुज्रे प्र॒युजो॒ जना॑नां॒ वहा॑मि स्म पू॒षण॒मन्त॑रेण । विश्वे॑ दे॒वासो॒ अध॒ माम॑रक्षन्दु॒:शासु॒रागा॒दिति॒ घोष॑ आसीत् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । मा॒ । यु॒यु॒ज्रे॒ । प्र॒ऽयुजः॑ । जना॑नाम् । वहा॑मि । स्म॒ । पू॒षण॑म् । अन्त॑रेण । विश्वे॑ । दे॒वासः॑ । अध॑ । माम् । अ॒र॒क्ष॒न् । दुः॒ऽशासुः॑ । आ । अ॒गा॒त् । इति॑ । घोषः॑ । आ॒सी॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र मा युयुज्रे प्रयुजो जनानां वहामि स्म पूषणमन्तरेण । विश्वे देवासो अध मामरक्षन्दु:शासुरागादिति घोष आसीत् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । मा । युयुज्रे । प्रऽयुजः । जनानाम् । वहामि । स्म । पूषणम् । अन्तरेण । विश्वे । देवासः । अध । माम् । अरक्षन् । दुःऽशासुः । आ । अगात् । इति । घोषः । आसीत् ॥ १०.३३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
विषय - लोकहित के कार्यों में लगे रहना
पदार्थ -
[१] मा = मुझे जनानां प्रयुजः = लोगों के कार्य [प्रयुज् - जिनमें लगा रहा जाता है] प्रयुयुज्रे प्रकर्षेण कार्य में लगाये रहते हैं । गत मन्त्र के अनुसार लोकहित के लिये दान देनेवाले लोग यही चाहते हैं कि हमें लोकहित के कार्य सदा व्यस्त रखें। हमें नाममात्र भी अवकाश न हो, हमारा सारा समय कार्यों में लगा रहे और मैं अन्तरेण - हृदय मध्य में पूषणं वहामि स्म उस पोषक परमात्मा को धारण करता हूँ । लोकहित के कार्यों में तो लगता हूँ, परन्तु उन सब कार्यों को उस हृदयस्थ प्रभु की शक्ति से ही होता हुआ जानता हूँ, उन कर्मों का मैं किसी प्रकार भी गर्व नहीं करता। सबका पोषण वे प्रभु ही करते हैं, मैंने क्या पोषण करना ? [२] अध= इस प्रकार लोकहित के इन कार्यों का गर्व न करने पर विश्वेदेवासः - सब देव मां अरक्षन्-मुझे सुरक्षित करते हैं। वस्तुतः ये लोकहित के कार्य ही यज्ञ कहलाते हैं, यज्ञों से देववृत्ति का रक्षण होता है । [३] इस प्रकार देवरक्षण प्राप्त होने पर जब कभी अशुभवृत्ति हृदय में उठती हैं तो 'दु:शासुः आगात्'=यह कठिनता से शासन करने योग्य वृत्ति आई इति - इस प्रकार घोष:- अन्दर की वाणी आसीत्-होती है । अन्तःस्थित प्रभु से यह प्रेरणा मिलती है कि यह वृत्ति अशुभ है इससे बचने का पूर्ण प्रयत्न करो ।
भावार्थ - भावार्थ- हम लोकहित के कार्यों में लगें, इन कार्यों को प्रभु की ओर से होता हुआ जानें। देवों से होनेवाली रक्षा का पात्र बनें। समय-समय पर प्रभु से दी जानेवाली प्रेरणाओं को सुनें ।
इस भाष्य को एडिट करें