ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
ऋ॒जी॒पी श्ये॒नो दद॑मानो अं॒शुं प॑रा॒वतः॑ शकु॒नो म॒न्द्रं मद॑म्। सोमं॑ भरद्दादृहा॒णो दे॒वावा॑न्दि॒वो अ॒मुष्मा॒दुत्त॑रादा॒दाय॑ ॥६॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒जी॒पी । श्ये॒नः । दद॑मानः । अं॒शुम् । प॒रा॒ऽवतः॑ । श॒कु॒नः । म॒न्द्रम् । मद॑म् । सोम॑म् । भ॒र॒त् । द॒दृ॒हा॒णः । दे॒वऽवा॑न् । दि॒वः । अ॒मुष्मा॑त् । उत्ऽता॑रात् । आ॒ऽदाय॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋजीपी श्येनो ददमानो अंशुं परावतः शकुनो मन्द्रं मदम्। सोमं भरद्दादृहाणो देवावान्दिवो अमुष्मादुत्तरादादाय ॥६॥
स्वर रहित पद पाठऋजीपी। श्येनः। ददमानः। अंशुम्। पराऽवतः। शकुनः। मन्द्रम्। मदम्। सोमम्। भरत्। ददृहाणः। देवऽवान्। दिवः। अमुष्मात्। उत्ऽतरात्। आऽदाय ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 26; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 6
विषय - दागृहाणो देवावान्
पदार्थ -
[१] (ऋजीपी) = [ऋजु, प्यायी वृद्धौ] ऋजुता से मार्ग पर आगे बढ़नेवाला (श्येनः) = शंसनीय गतिवाला जीव (परावतः) = उस दूर से दूर वर्तमान 'सर्वोत्कृष्ट' प्रभु से (अंशुम्) = प्रकाश की किरण को (ददमान:) = ग्रहण करता हुआ [धारयन् सा०] (शकुन:) = शक्तिशाली बनता है और (मन्द्रम्) = स्तुत्य (मदम्) = हर्ष के जनक (सोमम्) = सोम को (भरत्) = अपने में धारण करता है। प्रभु से प्राप्त ज्ञान हमें वासनाओं से बचाता है। वासनाओं से बचकर हम शक्तिशाली बनते हैं और सोम के महत्त्व को समझते हुए उसे सुरक्षित रखते हैं। [२] यह सोम का भरण करनेवाला पुरुष (अमुष्माद्) = उस (उत्तरात्) = उत्कृष्ट (दिवः) = प्रकाशमय प्रभु से (आदाय) = ज्ञान को [प्रकाश को] प्राप्त करके (दादृहाण:) = खूब ही दृढ़ शरीरवाला तथा (देवावान्) = दिव्य गुणोंवाला बनता है। प्रभुप्रदत्त ज्ञान इसे दृढ़ शरीरवाला व दिव्यवृत्तिवाला बनाता है।
भावार्थ - भावार्थ- सोम को धारण करनेवाला व्यक्ति दृढ़ शरीरवाला तथा दिव्य गुणोंवाला बनता है।
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