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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ये ह॒ त्ये ते॒ सह॑माना अ॒यास॑स्त्वे॒षासो॑ अग्ने अ॒र्चय॒श्चर॑न्ति। श्ये॒नासो॒ न दु॑वस॒नासो॒ अर्थं॑ तुविष्व॒णसो॒ मारु॑तं॒ न शर्धः॑ ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ह॒ । त्ये । ते॒ । सह॑मानाः । अ॒यासः॑ । त्वे॒षासः॑ । अ॒ग्ने॒ । अ॒र्चयः॑ । चर॑न्ति । श्ये॒नासः॑ । न । दु॒व॒स॒नासः॑ । अर्थ॑म् । तु॒वि॒ऽस्व॒णसः॑ । मारु॑तम् । न । शर्धः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ह त्ये ते सहमाना अयासस्त्वेषासो अग्ने अर्चयश्चरन्ति। श्येनासो न दुवसनासो अर्थं तुविष्वणसो मारुतं न शर्धः ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। ह। त्ये। ते। सहमानाः। अयासः। त्वेषासः। अग्ने। अर्चयः। चरन्ति। श्येनासः। न। दुवसनासः। अर्थम्। तुविऽस्वनसः। मारुतम्। न। शर्धः॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 6; मन्त्र » 10
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (ये) = जो (ह) = निश्चय से (त्ये) = वे प्रसिद्ध (ते) = आपकी (अर्चयः) = ज्योतियाँ हैं, वे (सहमाना:) = काम-क्रोध आदि शत्रुओं का अभिभव करनेवाली हैं। (अयास:) = गतिशील हैं, कर्मों में हमें प्रेरित करनेवाली हैं। (त्वेषास:) = दीप्तिवाली हैं। (दुवसनासः) = परिचरणीय हैं, सेवनीय हैं। इन ज्ञान ज्योतियों को हमें प्राप्त करना ही चाहिए। [२] (श्येनासः) = न तीव्र गतिवाले बाजों की तरह (अर्थं चरन्ति) = अर्थनीय-वाञ्छनीय-वस्तु की ओर गतिवाली होती हैं। शीघ्रता से अर्थ को प्राप्त करानेवाली होती हैं। ये ज्ञान-ज्योतियाँ (तुविष्वणसः) = महान् स्वनवाली होती हैं, खूब ही प्रभु के नामों का उच्चारण करनेवाली होती हैं। ये (मारुतं शर्धः न) = प्राणों के सैन्य के समान होती हैं। जिस प्रकार शरीर में प्राणों की सेना रोगकृमियों का विनाश करती है, उसी प्रकार ये अर्थियाँ वासनाओं को विदग्ध करनेवाली होती हैं ।

    भावार्थ - भावार्थ– प्रभु की दी हुई ज्ञान-ज्योतियाँ हमें गतिशील बनाती हैं, हमारे आन्तर शत्रुओं का विनाश करती हैं ।

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