ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
सखा॑यः॒ सं वः॑ स॒म्यञ्च॒मिषं॒ स्तोमं॑ चा॒ग्नये॑। वर्षि॑ष्ठाय क्षिती॒नामू॒र्जो नप्त्रे॒ सह॑स्वते ॥१॥
स्वर सहित पद पाठसखा॑यः । सम् । वः॒ । स॒म्यञ्च॑म् । इष॑म् । स्तोम॑म् । च॒ । अ॒ग्नये॑ । वर्षि॑ष्ठाय । क्षि॒ती॒नाम् । ऊ॒र्जः । नप्त्रे॑ । सह॑स्वते ॥
स्वर रहित मन्त्र
सखायः सं वः सम्यञ्चमिषं स्तोमं चाग्नये। वर्षिष्ठाय क्षितीनामूर्जो नप्त्रे सहस्वते ॥१॥
स्वर रहित पद पाठसखायः। सम्। वः। सम्यञ्चम्। इषम्। स्तोमम्। च। अग्नये। वर्षिष्ठाय। क्षितीनाम्। ऊर्जः। नप्त्रे। सहस्वते ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
विषय - सम्यञ्चमिषं-स्तोमं
पदार्थ -
[१] हे (सखायः) = समान ज्ञानवाले, मित्रभाव से चलनेवाले साथियो ! तुम (वः) = अपनी (सम्यञ्चम्) = मिलकर होनेवाली (इषम्) = गति को (च) = और (स्तोमम्) = स्तुति को (सम्) = [कुरुत, संस्कुरुत] सम्यक् करनेवाले होवो। तुम्हारे काम परस्पर विरोध करनेवाले न हों 'संगच्छध्वम्, संवदध्वम्' । तुम मिलकर प्रभु-स्तवन करनेवाले बनो। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार है। परिवार में किसी भी क्रिया एक-दूसरे का विरोध करनेवाली न हो और सब मिलकर प्रातः - सायं प्रभु-स्तवन करनेवाले हों । [२] यही मार्ग है (अग्नये) = उस अग्रणी प्रभु की प्राप्ति के लिये (वर्षिष्ठाय) = वृद्धतम प्रभु की प्राप्ति के लिये (क्षितीनाम्) = मनुष्यों के (ऊर्जः नप्त्रे) = बल व प्राणशक्ति को न गिरने देनेवाले प्रभु के लिये (सहस्वते) = शत्रुओं के कुचलनेवाले बलयुक्त प्रभु के लिये । यदि हमारी क्रियाएँ मिलकर होंगी और हम प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त होंगे तो प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनकर हम भी अग्रगतिवाले, बढ़ी हुई शक्तियोंवाले, अविनष्ट बलवाले व शत्रुओं के कुचलनेवाले बन पायेंगे। प्रभु-स्तवन करें। यही मार्ग है
भावार्थ - भावार्थ- हमारे क्रियाएँ परस्पर अविरुद्ध हों। हम मिलकर जिससे कि हम आगे बढ़ेंगे, सदा वृद्धि को प्राप्त करेंगे, शक्तियों को सुरक्षित रख पायेंगे और शत्रुओं को कुचलनेवाले बनेंगे।
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