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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 35 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
    ऋषिः - नरः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क॒दा भु॑व॒न्रथ॑क्षयाणि॒ ब्रह्म॑ क॒दा स्तो॒त्रे स॑हस्रपो॒ष्यं॑ दाः। क॒दा स्तोमं॑ वासयोऽस्य रा॒या क॒दा धियः॑ करसि॒ वाज॑रत्नाः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒दा । भु॒व॒न् । रथ॑ऽक्षयाणि । ब्रह्म॑ । क॒दा । स्तो॒त्रे । स॒ह॒स्र॒ऽपो॒ष्य॑म् । दाः॒ । क॒दा । स्तोम॑म् । वा॒स॒यः॒ । अ॒स्य॒ । रा॒या । क॒दा । धियः॑ । क॒र॒सि॒ । वाज॑ऽरत्नाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदा भुवन्रथक्षयाणि ब्रह्म कदा स्तोत्रे सहस्रपोष्यं दाः। कदा स्तोमं वासयोऽस्य राया कदा धियः करसि वाजरत्नाः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कदा। भुवन्। रथऽक्षयाणि। ब्रह्म। कदा। स्तोत्रे। सहस्रऽपोष्यम्। दाः। कदा। स्तोमम्। वासयः। अस्य। राया। कदा। धियः। करसि। वाजऽरत्नाः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] हे प्रभो ! (कदा) = कब (ब्रह्म) [ब्रह्माणि] = मेरे से किये जानेवाले स्तोत्र (रथक्षयाणि) = शरीररथ में आपके निवास को करानेवाले (भुवन्) = होते हैं? [भू= निवासे] । (कदा) = कब (स्तोत्रे) = मुझ स्तोता के लिये (सहस्रपोष्यम्) = हजारों का पोषण करने के योग्य धन को (दा:) = आप देते हैं । [२] (कदा) = कब (अस्य) = इस उपासक के (स्तोमम्) = स्तवन को (राया) = धन से (वासय:) = आप बसाते हैं ? कब मेरे स्तोत्र धनों से व्याप्त किये जाते हैं? (कदा) = कब आप (वाज रत्ना:) = शक्तियों के द्वारा रमणीय (धियः) = बुद्धियों को, ज्ञानों को आप (करसि) = करते हैं। कब आपकी कृपा से हम शक्तियों व बुद्धियों को प्राप्त कर पायेंगे ।

    भावार्थ - भावार्थ- हम स्तोत्रों के द्वारा प्रभु को अपने शरीर-रथ पर आसीन करें। सहस्रापोष्य धन को प्राप्त हों। हमारा स्तवन आवश्यक धन से युक्त हो। हमें शक्ति के द्वारा रमणीय बनी हुई बुद्धि प्राप्त हो ।

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