ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 103/ मन्त्र 10
गोमा॑युरदाद॒जमा॑युरदा॒त्पृश्नि॑रदा॒द्धरि॑तो नो॒ वसू॑नि । गवां॑ म॒ण्डूका॒ दद॑तः श॒तानि॑ सहस्रसा॒वे प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥
स्वर सहित पद पाठगोऽमा॑युः । अ॒दा॒त् । अ॒जऽमा॑युः । अ॒दा॒त् । पृश्निः॑ । अ॒दा॒त् । हरि॑तः । नः॒ । वसू॑नि । गवा॑म् । म॒ण्डूकाः॑ । दद॑तः । श॒तानि॑ । स॒ह॒स्र॒ऽसा॒वे । प्र । ति॒र॒न्ते॒ । आयुः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गोमायुरदादजमायुरदात्पृश्निरदाद्धरितो नो वसूनि । गवां मण्डूका ददतः शतानि सहस्रसावे प्र तिरन्त आयु: ॥
स्वर रहित पद पाठगोऽमायुः । अदात् । अजऽमायुः । अदात् । पृश्निः । अदात् । हरितः । नः । वसूनि । गवाम् । मण्डूकाः । ददतः । शतानि । सहस्रऽसावे । प्र । तिरन्ते । आयुः ॥ ७.१०३.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 103; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
विषय - विविध विद्याओं का उपदेश
पदार्थ -
पदार्थ - (गो-मायुः) = वाणियों का उपदेष्टा (नः वसूनि अदात्) = हमें ऐश्वर्य दे। (अज-मायुः नः वसूनि अदात्) = नित्य पदार्थ जीव, आत्मा और प्रकृति का उपदेशक हमें ऐश्वर्य दे। (हरितः) =ज्ञानसंग्रही विद्वान् (नः वसूनि अदात्) = हमें ऐश्वर्य दे। (मंडूकाः) = मोक्षादि आनन्द में मग्न और अन्यों को आनन्दित करनेवाले विद्वान् (सहस्रसावे) = सहस्रों के ऐश्वर्यों और सुखों के देने के निमित्त (गवां शतानि) = सैकड़ों वाणियों का (ददतः) = उपदेश करते हुए (आयुः प्र तिरन्ते) = आयु की वृद्धि करें।
भावार्थ - भावार्थ- विद्वान् जन लोगों के मध्य में वेद का उपदेश करें। ईश्वर, जीव, प्रकृति इन नित्य पदार्थों का उपदेश करें। विविध भौतिक ज्ञान का उपदेश करें। मोक्ष तथा मोक्षानन्द की प्राप्ति के साधन बतावें। सांसारिक पदार्थों की समृद्धि हेतु शिल्प विद्या आदि सिखावें। इस प्रकार राष्ट्र में भौतिक तथा आध्यात्मिक ऐश्वर्य की वृद्धि करें। अग्रिम सूक्त का ऋषि वसिष्ठ तथा देवता इन्द्रासोमौ रक्षोहणौ, इन्द्र, सोम, अग्नि, देवाः, ग्रावणः, मरुत, वसिष्ठ, पृथिव्यन्तरिक्षे हैं।
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