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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 25/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    ए॒वा न॑ इन्द्र॒ वार्य॑स्य पूर्धि॒ प्र ते॑ म॒हीं सु॑म॒तिं वे॑विदाम। इषं॑ पिन्व म॒घव॑द्भ्यः सु॒वीरां॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । वार्य॑स्य । पू॒र्धि॒ । प्र । ते॒ । म॒हीम् । सु॒ऽम॒तिम् । वे॒वि॒दा॒म॒ । इष॑म् । पि॒न्व॒ । म॒घव॑त्ऽभ्यः । सु॒ऽवीरा॑म् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा न इन्द्र वार्यस्य पूर्धि प्र ते महीं सुमतिं वेविदाम। इषं पिन्व मघवद्भ्यः सुवीरां यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव। नः। इन्द्र। वार्यस्य। पूर्धि। प्र। ते। महीम्। सुऽमतिम्। वेविदाम। इषम्। पिन्व। मघवत्ऽभ्यः। सुऽवीराम्। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 25; मन्त्र » 6
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 9; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    पदार्थ - हे (इन्द्र) = ऐश्वर्यवन् ! (न:) = हमें तू (वार्यस्य) = धनैश्वर्य से (पूर्धि) = पूर्ण कर। हम (ते) = तेरे (महीं) = पूज्य (सुमतिं) = ज्ञान को (वेविदाम) = प्राप्त करें। तू (मघवद्भ्यः) = धन-युक्तों को (सुवीराम्) = शुभ पुत्रों से (युक्त इषं) = अन्न पिन्व दे। हे सम्पन्न पुरुषो! (यूयं) = आप (नः स्वस्तिभिः) सदा पात उत्तम उपायों से हमारी सदा रक्षा करो।

    भावार्थ - भावार्थ-यज्ञ करने से राष्ट्र समृद्ध बनता है। यज्ञ द्वारा प्रजा नीरोग व स्वस्थ रहकर सुखी बनती है। पर्यावरण प्रदूषण रहित होने से अन्नादि की उत्पत्ति दोष रहित होकर राष्ट्र समृद्ध होता है। अगले सूक्त का ऋषि वसिष्ठ देवता इन्द्र है।

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