Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 3 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    प्रोथ॒दश्वो॒ न यव॑सेऽवि॒ष्यन्य॒दा म॒हः सं॒वर॑णा॒द्व्यस्था॑त्। आद॑स्य॒ वातो॒ अनु॑ वाति शो॒चिरध॑ स्म ते॒ व्रज॑नं कृ॒ष्णम॑स्ति ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रोथ॑त् । अश्वः॑ । न । यव॑से । अ॒वि॒ष्यन् । य॒दा । म॒हः । स॒म्ऽवर॑णात् । वि । अस्था॑त् । आत् । अ॒स्य॒ । वातः॑ । अनु॑ । वा॒ति॒ । शो॒चिः । अध॑ । स्म॒ । ते॒ । व्रज॑नम् । कृ॒ष्णम् । अ॒स्ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रोथदश्वो न यवसेऽविष्यन्यदा महः संवरणाद्व्यस्थात्। आदस्य वातो अनु वाति शोचिरध स्म ते व्रजनं कृष्णमस्ति ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रोथत्। अश्वः। न। यवसे। अविष्यन्। यदा। महः। सम्ऽवरणात्। वि। अस्थात्। आत्। अस्य। वातः। अनु। वाति। शोचिः। अध। स्म। ते। व्रजनम्। कृष्णम्। अस्ति ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    [१] उस सत्यस्वरूप प्रभु का स्वरूप इस प्रकृति के हिरण्यपात्र से छिपा हुआ है 'हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्'। यह हिरण्मय पात्र ही यहाँ 'महान् संवरण' कहा गया है। जब कभी यह संवरण हटता है तो उस प्रभु का दर्शन होता है, उसकी ज्ञान वाणी सुन पड़ती है। (यदा) = जब (महः संवरणात्) = इस महान् संवरण से (व्यस्थात्) = प्रभु हमारे लिये अलग हो जाते हैं तो (अविष्यन्) = हमारे रक्षण की कामना करते हुए (यवसे) = बुराइयों को हमारे से पृथक् करने के लिये (अश्वः न) = अश्व के समान (प्रोथत्) = गर्जना करते हुए होते हैं वे प्रभु घोड़े की तरह गर्जना करते हुए आते हैं और 'ऋग् यजु साम' रूप त्रिविध वाणी का उच्चारण करते हैं। यह वाणी ही हमारे से बुराइयों को दूर करने का साधन बनती है। [२] (आत्) = अब (अस्य शोचिः अनु) = इस प्रभु की ज्ञानदीप्ति की अनुसार (वातः वाति) = हमें प्रेरणा प्राप्त होती है [वा गतौ] । (अध) = अब इस प्रभु की प्रेरणा के प्राप्त होने पर (ते व्रजनम्) = हे उपासक तेरा गमन (कृष्णम्) = बड़ा आकर्षक (अस्ति) = होता है। प्रभु प्रेरणा के अनुसार चलते हुए उपासक के सब कार्य उत्तम होते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रकृति के आवरण के हटने पर प्रभु का दर्शन होता है। इस समय प्रभु की ओर से ज्ञान व प्रेरणा प्राप्त होती है। इस प्रेरणा के अनुसार चलते हुए उपासक का जीवन बड़ा सुन्दर होता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top