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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
अ॒स्य प्र॒त्नामनु॒ द्युतं॑ शु॒क्रं दु॑दुह्रे॒ अह्र॑यः । पय॑: सहस्र॒सामृषि॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । प्र॒त्नाम् । अनु॑ । द्युत॑म् । शु॒क्रम् । दु॒दु॒ह्रे॒ । अह्र॑यः । पयः॑ । स॒ह॒स्र॒ऽसाम् । ऋषि॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्रत्नामनु द्युतं शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः । पय: सहस्रसामृषिम् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । प्रत्नाम् । अनु । द्युतम् । शुक्रम् । दुदुह्रे । अह्रयः । पयः । सहस्रऽसाम् । ऋषिम् ॥ ९.५४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 54; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
विषय - अब केवल परमात्मा के सेवन में हेतु कहते हैं।
पदार्थ -
(अह्रयः) विज्ञानी लोग (अस्य) इस परमात्मा के (प्रत्नाम् ऋषिम् अनु) रचित प्राचीन वेद से (द्युतं) दीप्तिमान् (शुक्रं) पवित्र (सहस्रसाम्) अपरिमित शक्तियों को उत्पन्न करनेवाले (पयः दुदुह्रे) ब्रह्मानन्द रस को दुहते हैं ॥१॥
भावार्थ - उक्त कामधेनुरूप परमात्मा से विद्वान् सदाचारी लोग दुग्धामृत के दोग्धा बनकर संसार में ब्रह्मामृत का संचार करते हैं ॥१॥
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