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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 59/ मन्त्र 4
पव॑मान॒ स्व॑र्विदो॒ जाय॑मानोऽभवो म॒हान् । इन्दो॒ विश्वाँ॑ अ॒भीद॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मान । स्वः॑ । वि॒दः॒ । जाय॑मानः । अ॒भ॒वः॒ । म॒हान् । इन्दो॒ इति॑ । विश्वा॑न् । अ॒भि । इत् । अ॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान स्वर्विदो जायमानोऽभवो महान् । इन्दो विश्वाँ अभीदसि ॥
स्वर रहित पद पाठपवमान । स्वः । विदः । जायमानः । अभवः । महान् । इन्दो इति । विश्वान् । अभि । इत् । असि ॥ ९.५९.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 59; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
पदार्थ -
(पवमान) हे सर्वपावक ! (इन्दो) परमात्मन् ! आप (अभवः) अनादि हैं और (महान्) पूजनीय हैं तथा (विश्वान् अभि इदसि) सबको नीच किये हुए आप सर्वोपरि विराजमान हैं। (जायमानः) आप विज्ञानियों के हृदय में प्रादुर्भूत होते हुए (स्वः विदः) सर्वविध अभीष्टों को प्रदान करिये ॥४॥
भावार्थ - उसी परमात्मा की उपासना से सब इष्ट फलों की प्राप्ति होती है ॥४॥ यह ५९वाँ सूक्त और १६वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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