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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 60/ मन्त्र 1
प्र गा॑य॒त्रेण॑ गायत॒ पव॑मानं॒ विच॑र्षणिम् । इन्दुं॑ स॒हस्र॑चक्षसम् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । गा॒य॒त्रेण॑ । गा॒य॒त॒ । पव॑मानम् । विऽच॑र्षणिम् । इन्दु॑म् । स॒हस्र॑ऽचक्षसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र गायत्रेण गायत पवमानं विचर्षणिम् । इन्दुं सहस्रचक्षसम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । गायत्रेण । गायत । पवमानम् । विऽचर्षणिम् । इन्दुम् । सहस्रऽचक्षसम् ॥ ९.६०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 60; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
विषय - अब उसके गुणों के कीर्त्तन से परमात्मा की स्तुति करते हैं।
पदार्थ -
हे होता लोगों ! तुम (इन्दुम्) परमैश्वर्यसम्पन्न (पवमानम्) सबको पवित्र करनेवाले (सहस्रचक्षसम्) अनेकविध वेदादिवाणीवाले (विचर्षणिम्) सर्वद्रष्टा परमात्मा को (गायत्रेण) गायत्रादि छन्दों से (प्रगायत) गान करो ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! तुम वेदाध्ययन से अपने आपको पवित्र करो ॥१॥
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