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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 30
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    या ते॑ भी॒मान्यायु॑धा ति॒ग्मानि॒ सन्ति॒ धूर्व॑णे । रक्षा॑ समस्य नो नि॒दः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । ते॒ । भी॒मानि॑ । आयु॑धा । ति॒ग्मानि॑ । सन्ति॑ । धूर्व॑णे । रक्ष॑ । स॒म॒स्य॒ । नः॒ । नि॒दः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ते भीमान्यायुधा तिग्मानि सन्ति धूर्वणे । रक्षा समस्य नो निदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । ते । भीमानि । आयुधा । तिग्मानि । सन्ति । धूर्वणे । रक्ष । समस्य । नः । निदः ॥ ९.६१.३०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 30
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 23; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    हे सेनापते ! (धूर्वणे) शत्रुओं के नाश के लिये (या) जो (ते) आपके (भीमानि तिग्मानि आयुधा सन्ति) भयंकर तीक्ष्ण शस्त्र हैं, तिनसे (नः) हमको (समस्य निदः) सब प्रकार के अपयशों से (रक्ष) बचाइये ॥३०॥

    भावार्थ - तीक्ष्ण शस्त्रोंवाले सेनापति प्रजाओं को सब प्रकार की विपत्तियों से बचाते हैं ॥३०॥ यह ६१ वाँ सूक्त और २३ वाँ वर्ग समाप्त हुआ।

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