ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 1
ए॒ते अ॑सृग्र॒मिन्द॑वस्ति॒रः प॒वित्र॑मा॒शव॑: । विश्वा॑न्य॒भि सौभ॑गा ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । अ॒सृ॒ग्र॒म् । इन्द॑वः । ति॒रः । प॒वित्र॑म् । आ॒शवः॑ । विश्वा॑नि । अ॒भि । सौभ॑गा ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशव: । विश्वान्यभि सौभगा ॥
स्वर रहित पद पाठएते । असृग्रम् । इन्दवः । तिरः । पवित्रम् । आशवः । विश्वानि । अभि । सौभगा ॥ ९.६२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
विषय - अब सेनापति की प्रशंसा की जाती है।
पदार्थ -
(एते) यह (आशवः) क्रियादक्ष (इन्दवः) सेनाधीश (पवित्रम् अभि) अपनी पवित्र प्रजा के लिये (विश्वानि) सब प्रकार के (तिरः) द्विगुण (सौभगा) भोग्य पदार्थों को (असृग्रम्) पैदा करता है ॥१॥
भावार्थ - हस मन्त्र में सेनापति के गुणों का वर्णन किया है ॥१॥
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