Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1149
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
5

त꣡मी꣢डिष्व꣣ यो꣢ अ꣣र्चि꣢षा꣣ व꣢ना꣣ वि꣡श्वा꣢ परि꣣ष्व꣡ज꣢त् । कृ꣣ष्णा꣢ कृ꣣णो꣡ति꣢ जि꣣ह्व꣡या꣢ ॥११४९॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣢म् । ई꣣डिष्व । यः꣢ । अ꣣र्चि꣡षा꣢ । व꣡ना꣢꣯ । वि꣡श्वा꣢꣯ । प꣣रिष्व꣡ज꣢त् । प꣣रि । स्व꣡ज꣢꣯त् । कृ꣣ष्णा꣢ । कृ꣣णो꣡ति꣢ । जि꣣ह्व꣡या꣢ ॥११४९॥


स्वर रहित मन्त्र

तमीडिष्व यो अर्चिषा वना विश्वा परिष्वजत् । कृष्णा कृणोति जिह्वया ॥११४९॥


स्वर रहित पद पाठ

तम् । ईडिष्व । यः । अर्चिषा । वना । विश्वा । परिष्वजत् । परि । स्वजत् । कृष्णा । कृणोति । जिह्वया ॥११४९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1149
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
Acknowledgment

पदार्थ -

(तम्) = उस अग्नि नामक प्रभु का (ईडिष्व) = स्तवन करो (यः) = जो (अर्चिषा) = अपनी ज्ञान की ज्वालाओं से (विश्वा वना) = सम्पूर्ण ज्ञानरश्मियों का (परिष्वजत्) = आलिंगन करता है और अपने स्तोताओं के साथ भी ज्ञान-रश्मियों का सम्बन्ध करता है । यह स्तुत्य प्रभु (जिह्वया) = अपनी वेदवाणी के द्वारा (कृष्णा कृणोति) = हमारे कर्मों को क्षीण कर देता है। उपनिषद् में कहा है—‘क्षीयन्ते चास्य कर्माणि'=इस ज्ञानी, प्रभुभक्त के कर्म क्षीण हो जाते हैं । [जिह्वा वाङ्नाम – नि० १.११] भस्म हुए वे कर्मफल जननशक्ति शून्य हो जाते हैं और इस प्रकार ये ज्ञानी स्तोता नैष्कार्म्य सिद्धि को प्राप्त करके मुक्त हो जाता है । 

भावार्थ -

हम प्रभु का स्तवन करें – प्रभु की ज्ञानरश्मियाँ हमारा आलिंगन करें और ज्ञान के द्वारा हमारे कर्म भस्मसात् हो जाएँ ।

इस भाष्य को एडिट करें
Top