Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1543
ऋषिः - विरूप आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
5
म꣣न्द्र꣡ꣳ होता꣢꣯रमृ꣣त्वि꣡जं꣢ चि꣣त्र꣡भा꣢नुं वि꣣भा꣡व꣢सुम् । अ꣣ग्नि꣡मी꣢डे꣣ स꣡ उ꣢ श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर सहित पद पाठमन्द्र꣢म् । हो꣡ता꣢꣯रम् । ऋ꣣त्वि꣡ज꣢म् । चि꣣त्र꣡भा꣢नुम् । चि꣣त्र꣢ । भा꣣नुम् । विभा꣡व꣢सुम् । वि꣣भा꣢ । व꣣सुम् । अग्नि꣢म् । ई꣣डे । सः꣢ । उ꣣ । श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर रहित मन्त्र
मन्द्रꣳ होतारमृत्विजं चित्रभानुं विभावसुम् । अग्निमीडे स उ श्रवत् ॥१५४३॥
स्वर रहित पद पाठ
मन्द्रम् । होतारम् । ऋत्विजम् । चित्रभानुम् । चित्र । भानुम् । विभावसुम् । विभा । वसुम् । अग्निम् । ईडे । सः । उ । श्रवत् ॥१५४३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1543
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 15; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - वह प्रभु अवश्य सुनता है
पदार्थ -
मैं (अग्निम्) = मेरे जीवन के पथ-प्रदर्शक प्रभु की (ईडे) = स्तुति करता हूँ, (सः) = वह प्रभु (उ) = निश्चय से (श्रवत्) = सुनते हैं। प्रभु से की गयी प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती, वहाँ हमारी पुकार अरण्यरोदन नहीं होतीं। मैं उस प्रभु को पुकारता हूँ जो
१. (मन्द्रम्) = सदा आनन्दमय व आनन्दित करनेवाले हैं ।
२. (होतारम्) - जो संसार में जीव को उन्नति के सब साधन प्राप्त करानेवाले हैं।
३. (ऋत्विजम्) = जो प्रत्येक समय पर उपासना के योग्य हैं।
४. (चित्रभानुम्) = जो अद्भुत दीप्तिवाले हैं।
५. (विभावसुम्) = जो ज्ञानरूप धनवाले हैं। 'ऋत्विजम्' शब्द का अर्थ ऋतु - ऋतु के अनुसार हमारे साथ भिन्न-भिन्न वस्तुओं का मेल करानेवाला भी है। प्रभु प्रत्येक ऋतु के योग्य वस्तुओं को हमें प्राप्त करनेवाले हैं। ऋतु के अनुसार ही सब आहार-विहार करनेवाला व्यक्ति इस मन्त्र का ऋषि विरूप-विशिष्टरूपवाला आङ्गिरस= शक्तिशाली बनता है ।
भावार्थ -
हम प्रभु के स्तोता बनकर सदा प्रसन्नचित्त रहने का प्रयत्न करें ।