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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 591
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - विश्वे देवाः
छन्दः - एकपात् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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इ꣣मं꣡ वृष꣢꣯णं कृणु꣣तै꣢꣫क꣣मि꣢न्माम् ॥५९१
स्वर सहित पद पाठइ꣣म꣢म् । वृ꣡ष꣢꣯णम् । कृ꣣णुत । ए꣡क꣢꣯म् । इत् । माम् ॥५९१॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं वृषणं कृणुतैकमिन्माम् ॥५९१
स्वर रहित पद पाठ
इमम् । वृषणम् । कृणुत । एकम् । इत् । माम् ॥५९१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 591
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1;
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विषय - शक्ति का पुञ्ज बन जाएँ
पदार्थ -
यह ‘एकपाद जगती' छन्द का मन्त्र है। एक ही चरण में इसमें सारे ब्रह्माण्ड की याचना हो गई है। 'वृद्धा-जरती - न्याय' के अनुसार यहाँ एक ही वाक्य मे सब-कुछ माँग लिया गया है। ‘मैं अपने युवा पुत्रों को सोने के पात्रों में प्रातराश करती पाऊँ । इस वाक्य में वृद्धा ने १. मृत पति का नवजीवन २. अपना यौवन ३. उत्तम सन्तान व ४. सम्पत्ति सभी वस्तुएँ माँग ली। इसी प्रकार प्रस्तुत मन्त्र में 'वामदेव गोतम' सभी दिव्य गुणों को तथा प्रशस्त इन्द्रियों को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करता है
(इमं माम्) = इस मुझे–गत मन्त्र के उत्तरार्ध में संकेतित प्रयत्न करनेवाले मुझे (इत्) = निश्चय से (एकं वृषणम्) = अद्वितीय शक्तिशाली (कृणुत) = कर दो - बना दो। शक्ति के साथ सब गुणों का निवास है। गुण [virtue] वीरत्व है और दुर्गुण [evil] - अवीरता। शक्ति संयम साध्य है और संयम सब गुणों का मूल है। शक्ति होने पर सब दिव्य गुण आ जाते हैं। इस बात का संकेत प्रस्तुत मन्त्र के 'विश्वे देवाः' देवता से भी हो रहा है। याचना शक्ति की है विषय 'सब दिव्य गुणों की प्राप्ति' है। शक्ति से ही सब दिव्य गुणों को आ- कर हमें 'वामदेव' बनाना है। यह सुन्दर दिव्य गुणोंवाला वामदेव प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि है। 'इसकी सब इन्द्रियाँ पवित्र हैं', अतः यह गोतम है।
भावार्थ -
प्रभु ‘तेजपुञ्ज' हैं। मुझे तेजस्वी बनाएँ। मैं भी 'तेजपुञ्ज' बनने का प्रयत्न करूँ।