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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 701
ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
4

ऋ꣣त꣡स्य꣢ जि꣣ह्वा꣡ प꣢वते꣣ म꣡धु꣢ प्रि꣣यं꣢ व꣣क्ता꣡ पति꣢꣯र्धि꣣यो꣢ अ꣣स्या꣡ अदा꣢꣯भ्यः । द꣡धा꣢ति पु꣣त्रः꣢ पि꣣त्रो꣡र꣢पी꣣च्यां꣢३꣱ ना꣡म꣢ तृ꣣ती꣢य꣣म꣡धि꣢ रोच꣣नं꣢ दि꣣वः꣢ ॥७०१

स्वर सहित पद पाठ

ऋ꣣त꣡स्य꣢ । जि꣣ह्वा꣢ । प꣣वते । म꣡धु꣢꣯ । प्रि꣣य꣢म् । व꣣क्ता꣢ । प꣡तिः꣢꣯ । धि꣣य꣢ । अ꣡स्याः꣢ । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः । द꣡धा꣢꣯ति । पु꣣त्रः꣢ । पु꣣त् । त्रः꣢ । पि꣣त्रोः꣢ । अ꣣पीच्य꣢म् । ना꣡म꣢꣯ । तृ꣣ती꣡य꣢म् । अ꣡धि꣢꣯ । रो꣣चन꣢म् । दि꣣वः꣢ ॥७०१॥


स्वर रहित मन्त्र

ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियं वक्ता पतिर्धियो अस्या अदाभ्यः । दधाति पुत्रः पित्रोरपीच्यां३ नाम तृतीयमधि रोचनं दिवः ॥७०१


स्वर रहित पद पाठ

ऋतस्य । जिह्वा । पवते । मधु । प्रियम् । वक्ता । पतिः । धिय । अस्याः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः । दधाति । पुत्रः । पुत् । त्रः । पित्रोः । अपीच्यम् । नाम । तृतीयम् । अधि । रोचनम् । दिवः ॥७०१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 701
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5; सूक्त » 5; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

'कवि भार्गव' की १. (ऋतस्य जिह्वा) = सत्य की वाणी (मधु पवते) = माधुर्य को प्रकट करती है, अर्थात् यह कवि सदा सत्य वाणी को ही प्रिय ढंग से बोलता है । २.( प्रियं वक्ता) = अप्रिय शब्द न बोलकर सदा प्रिय शब्दों का उच्चारण करता है । ३. यह (अस्याः धियः पतिः) = ‘सत्य को प्रिय प्रकार से बोलने' की कला [धी] का पति होता है, अर्थात् प्रिय सत्य को प्रकट करने में नैपुण्य प्राप्त कर लेता है, परन्तु खुशामदी नहीं बनता । खुशामदी बनना तो दूर रहा वह न दबनेवाला, ४. (अदाभ्यः) = एक विशेष प्रकार की तेजस्वितावाला तथा पवित्र बना रहता है ।

समाज में उल्लिखित ढंग से वर्त्तता हुआ यह कवि (पित्रोः पुत्रः) = अपने परमेश्वररूप मातापिता का सच्चा पुत्र बनकर (अपीच्याम्) = सुन्दर व रहस्यमय (नाम) = नमन - विनीतता को (दधाति) = धारण करता है। यह विनीतता ही (तृतीयम्) = उसका तीर्णतम तीसरा गुण है। पहला गुण 'प्रिय, मधुर, सत्य बोलना' था, द्वितीय गुण 'न दबना व पवित्र बने रहना था' तृतीय गुण 'विनीतता' है । यह विनीतता (दिवः) = ज्ञान का, प्रकाश का (अधिरोचनम्) = उत्तम आभूषण है। इसकी विनीतता इस ‘भार्गव कवि' के ज्ञान को चार चाँद लगा देती है – उसे अधिक दीप्त कर देती है ।

भावार्थ -

१. प्रिय सत्य बोलनेवाले, २. पवित्र तेजस्वी तथा ३. विनीत ज्ञानी बनते हुए हम अपने माता-पिता के सच्चे पुत्र बनें ।

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