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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 737
ऋषिः - विश्वामित्रो गाथिनः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
इ꣣द꣡ꣳ ह्यन्वोज꣢꣯सा सु꣣त꣡ꣳ रा꣢धानां पते । पि꣢बा꣣ त्वा꣢३स्य꣡ गि꣢र्वणः ॥७३७॥
स्वर सहित पद पाठइ꣣द꣢म् । हि । अ꣡नु꣢꣯ । ओ꣡ज꣢꣯सा । सु꣣त꣢म् । रा꣣धानाम् । पते । पि꣡ब꣢꣯ । तु । अ꣣स्य꣢ । गि꣣र्व꣡णः । गिः । वनः ॥७३७॥
स्वर रहित मन्त्र
इदꣳ ह्यन्वोजसा सुतꣳ राधानां पते । पिबा त्वा३स्य गिर्वणः ॥७३७॥
स्वर रहित पद पाठ
इदम् । हि । अनु । ओजसा । सुतम् । राधानाम् । पते । पिब । तु । अस्य । गिर्वणः । गिः । वनः ॥७३७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 737
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - राधा-पति
पदार्थ -
प्रभु कहते हैं कि (इदम्) = यह सोम [वीर्य-शक्ति] (हि) = निश्चय से (ओजसा) = ओज के दृष्टिकोण
से (अनुसुतम्) = रस-रुधिरादि के क्रम से तेरे शरीर में उत्पन्न की गयी है। (राधानां पते) = हे सफलताओं के स्वामिन्! [राध्=-सिद्धि] (पिब तु अस्य) = निश्चय से तू इसका पान कर। इसका पान ही तुझे संसार में सफल बनाएगा । जीव को 'राधानां पते' शब्द से सम्बोधन करना उसे प्रेरणा देने के लिए है कि तूने सफल बनना है। इसे सफल बनाने का साधन सोम का पान है।
सोम के पान के लिए साधना का संकेत 'गिर्वणः' शब्द में है । 'गिर्वणः' का अर्थ है कि गिराओं से—वेद-वाणियों से अथवा गिरा से - वाणी से प्रभु का सम्भजन करनेवाला । प्रभु के नाम का जप मनुष्य के मन को विषयों की प्रवृत्ति से रोकता - बचाता है और इस प्रकार उसे सोम-पान के योग्य बनाता है ।
एवं, सोमपान का साधन तो प्रभु के नाम का जप व वेदवाणियों का सेवन है और इसका साध्य 'सफलता' है।
भावार्थ -
मैं प्रभु के नाम के जप व वेदवाणियों के सेवन द्वारा सोम-पान करता हुआ सदा राधा=सिद्धि का पति बनँञ ।
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