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अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 7

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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - एकपदा गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    तं श्र॒द्धा च॑य॒ज्ञश्च॑ लो॒कश्चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च भू॒त्वाभि॑प॒र्याव॑र्तन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । श्र॒ध्दा । च॒ । य॒ज्ञ: । च॒ । लो॒क: । च॒ । अन्न॑म् । च॒ । अ॒न्न॒ऽअद्य॑म् । च॒ । भू॒त्वा । अ॒भि॒ऽप॒र्याव॑र्तन्त ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं श्रद्धा चयज्ञश्च लोकश्चान्नं चान्नाद्यं च भूत्वाभिपर्यावर्तन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । श्रध्दा । च । यज्ञ: । च । लोक: । च । अन्नम् । च । अन्नऽअद्यम् । च । भूत्वा । अभिऽपर्यावर्तन्त ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 7; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. (तम्) = उस व्रात्य को (श्रद्धा च यज्ञः च) = श्रद्धा और यज्ञ (लोक: च) = प्रकाश, (अन्नं च अन्नाचं च) = जौ, चावलादि अन्न तथा भात आदि खाने योग्य पदार्थ (भूत्वा) = [भू गती] प्राप्त होकर (अभिपर्यावर्तन्त) = अभ्युदय व निःश्रेयस [अभि] के साधक कर्मों में प्रवृत्त करते हैं। २. (यः) = जो (एवं वेद) = इसप्रकार 'श्रद्धा, यज्ञ व प्रकाश के तथा अन्न और अन्नाद्य' के महत्त्व को समझ लेता है, (एनम्) = इस व्रात्य को श्रद्धा (आगच्छति) = श्रद्धा प्राप्त होती है, (एनम्) = इसे यज्ञः (आगच्छति) = यज्ञ प्राप्त होता है, (एनम्) = इसको (लोक:) = प्रकाश (आगच्छति) = प्राप्त होता है, (एनम्) = इसे (अन्नम्) = अन्न (आगच्छति) = प्राप्त होता है। (एनम्) = इसे (अन्नाद्यं आगच्छति) = खानेयोग्य भातादि पदार्थ प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ -

    यह व्रात्य 'श्रद्धा, यज्ञ, प्रकाश, अन्न व अन्नाद्य' से युक्त होकर अभ्युदय व निःश्रेयस-साधक कर्मों में प्रवृत्त होता है।

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