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यजुर्वेद अध्याय - 35

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  • यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 8
    ऋषिः - आदित्या देवा ऋषयः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    शं वातः॒ शꣳ हि ते॒ घृणिः॒ शं ते॑ भव॒न्त्विष्ट॑काः।शं ते॑ भवन्त्व॒ग्नयः॒ पार्थि॑वासो॒ मा त्वा॒भि शू॑शुचन्॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। वातः॑। शम्। हि। ते॒। घृणिः॑। शम्। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। इष्ट॑काः ॥ शम्। ते॒। भ॒व॒न्तु॒। अ॒ग्नयः॑। पार्थि॑वासः। मा। त्वा॒। अ॒भि। शू॒शु॒च॒न् ॥८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं वातः शँ हि ते घृणिः शन्ते भवन्त्विष्टकाः । शन्ते भवन्त्वग्नयः पार्थिवासो मा त्वाभिशूशुचन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। वातः। शम्। हि। ते। घृणिः। शम्। ते। भवन्तु। इष्टकाः॥ शम्। ते। भवन्तु। अग्नयः। पार्थिवासः। मा। त्वा। अभि। शूशुचन्॥८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 35; मन्त्र » 8
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    पदार्थ -

    पदार्थ =  हे जीव! ( वात: ) = वायु  ( शम् ) =  सुखकारी हो।  ( ते ) =  तेरे लिए  ( घृणि: ) = सूर्य  ( हि ) =  भी  ( शम् ) = सुखकर हो।  ( ते ) = तेरे लिए  ( इष्टका: ) = वेदों में चयन की हुई ईंटें अथवा ईंटों से बने हुए स्थान  ( शम् ) =  सुखप्रद  ( भवन्तु ) =  हो  ( ते ) = तेरे लिए  ( पार्थिवासः अग्रयः ) =  इस पृथिवी की अग्नि और बिजली आदि  ( शम् भवन्तु ) = सुखकारक हो। ये सब अग्रि, वायु, सूर्य, बिजली आदि पदार्थ  ( त्वा ) = तुमको  ( मा अभिशूशुचन् ) = न दग्ध करें, न सतावें, दुःख और शोक के कारण न हों।

    भावार्थ -

    भावार्थ = दयामय परमपिता परमात्मा, हम सबको वेद द्वारा उपदेश करते हैं कि- हे मेरे प्यारे पुत्रो! आप सबको चाहिये कि आप लोग ऐसे अच्छे धार्मिक काम करो और मेरी भक्ति, प्रार्थना उपासना में लग जाओ, जिससे अग्नि  बिजली सूर्यादि सब दिव्य देव, आपको सुखदायक हो। प्यारे पुत्र ये सब पदार्थ आप लोगों को सुख देने के लिए ही  मैंने बनाए हैं. दुःख देने के लिए नहीं। दुःख तो अपनी अविद्या, मूर्खता, अधर्म करने और प्रभु से विमुख होने से होता है। आप, पापों को छोड़कर मुझ प्रभु की शरण में आकर सदा सुखी हो जाओ।

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