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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 38
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - वर्षादयो देवताः छन्दः - स्वराड् जगती स्वरः - निषादः
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    व॒र्षा॒हूर्ऋ॑तू॒नामा॒खुः कशो॑ मान्था॒लस्ते पि॑तॄ॒णां बला॑याजग॒रो वसू॑नां क॒पिञ्ज॑लः क॒पोत॒ऽउलू॑कः श॒शस्ते निर्ऋ॑त्यै॒ वरु॑णायार॒ण्यो मे॒षः॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒र्षा॒हूरिति॑ वर्षऽआ॒हूः। ऋ॒तू॒नाम्। आ॒खुः। कशः॑। मा॒न्था॒लः। ते। पि॒तॄ॒णाम्। बला॑य। अ॒ज॒ग॒रः। वसू॑नाम्। क॒पिञ्ज॑लः। क॒पोतः॑। उलू॑कः। श॒शः। ते। निर्ऋ॑त्या॒ऽइति॒ निःऋ॑त्यै। वरु॑णाय। आ॒र॒ण्यः। मे॒षः ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्षाहूरृतूनामाखुः कशो मान्थालस्ते पितऋृणाम्बलायाजगरो वसूनाङ्कपिञ्जलः कपोत उलूकः शशस्ते निरृत्यै वरुणायारण्यो मेषः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वर्षाहूरिति वर्षऽआहूः। ऋतूनाम्। आखुः। कशः। मान्थालः। ते। पितॄणाम्। बलाय। अजगरः। वसूनाम्। कपिञ्जलः। कपोतः। उलूकः। शशः। ते। निर्ऋत्याऽइति निःऋत्यै। वरुणाय। आरण्यः। मेषः॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 38
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    भावार्थ -
    ( वर्षाहू: ऋतूनाम् ) वर्षाओं को लाने वाला काल ऋतुओं में सबसे श्रेष्ठ है । (आखु :) सब ओर से भूमि को खनकर रत्न, जल, अन्न आदि प्राप्त करने वाला, (कशः) कशा के समान शासक या सर्व विद्याओं का प्रकाशक और (मान्थाल :) मथन करके सार भाग प्राप्त करने वाला, ये तीनों प्रकार के पुरुष ( पितॄणाम् ) पालक माता पिता के समान प्रिय, हितकारी हैं । इसी प्रकार वर्षा में बोलने वाले मेंढक जाति, मूषक और मान्थाल जन्तु काल ज्ञान, दीप्ति पालना आदि गुणों के लिये अनुकरणीय हैं । (बलाय) बल के सम्पादन के लिये (अजगरः) अजगर का अनुकरण करे । जैसे अजगर के समान शरीर देखने में कोमल होकर भी इच्छानुसार कठोर और बलपूर्ण हो । ( वसूनां कपिञ्जलः) उत्तम वचन कहने वाला पुरुष कपिंजल पक्षी के समान राष्ट्रवासी प्रजाओं का प्रिय हो । (कपोतः उलूकः शशः ते निर्ऋत्यै) कपोत, उलूक और शशक ये तीनों जन्तु संकट, विपत्ति की सूचना देने वाले हैं। उसके लिये इनकी प्रकृति का अध्ययन करे । (आरण्यो मेष: वरुणाय) जंगली मेढ़ा या जंगली भैंसा, 'वरुण' अर्थात् शत्रुनिवारक पुरुष को अनुकरणीय हैं। शत्रु मारने के काम में पुरुष को उसके समान प्राणपण से जुट जाना चाहिये ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वर्षादयः । स्वराड् जगती । निषादः ॥

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