यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 34
होता॑ यक्ष॒त् स्वाहा॑कृतीर॒ग्निं गृ॒हप॑तिं॒ पृथ॒ग्वरु॑णं भेष॒जं कविं॑ क्ष॒त्रमिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्।अति॑च्छन्दसं॒ छन्द॑ऽइन्द्रि॒यं बृ॒हदृ॑ष॒भं गां वयो॒ दध॒द् व्यन्त्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑॥३४॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑। य॒क्ष॒त्। स्वाहा॑कृती॒रिति॒ स्वाहा॑ऽकृतीः। अ॒ग्निम्। गृ॒हप॑ति॒मिति॑ गृ॒हऽप॑तिम्। पृथ॑क्। वरु॑णम्। भे॒ष॒जम्। क॒विम्। क्ष॒त्रम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। अति॑छन्दस॒मित्यति॑ऽछन्दसम्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। बृ॒हत्। ऋ॒ष॒भम्। गाम्। वयः॑। दध॑त्। व्यन्तु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥३४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता यक्षत्स्वाहाकृतीरग्निङ्गृहपतिम्पृथग्वरुणम्भेषजङ्कविङ्क्षत्रमिन्द्रँवयोधसम् । अतिच्छन्दसञ्छन्दऽइन्द्रियम्बृहदृषभङ्गाँवयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
होता। यक्षत्। स्वाहाकृतीरिति स्वाहाऽकृतीः। अग्निम्। गृहपतिमिति गृहऽपतिम्। पृथक्। वरुणम्। भेषजम्। कविम्। क्षत्रम्। इन्द्रम्। वयोधसमिति वयःऽधसम्। अतिछन्दसमित्यतिऽछन्दसम्। छन्दः। इन्द्रियम्। बृहत्। ऋषभम्। गाम्। वयः। दधत्। व्यन्तु। आज्यस्य। होतः। यज॥३४॥
विषय - होता द्वारा भिन्न-भिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनके विशेष आवश्यक लक्षण, अधिकार और शक्तियों का वर्णन।
भावार्थ -
(होता) योग्याधिकारप्रदाता विद्वान् पुरुष ( स्वाहा - कृती:) उत्तम, ज्ञान, वाणियों के उपदेश करने वाली संस्थाओं को ( यक्षत्) योग्य अधिकार दे और ( अग्निम् ) ज्ञानवान्, तेजस्वी ( गृहपतिम् ) गृह के - पालक ( वरुणम् ) सर्व दोषों के वारण करने में समर्थ श्रेष्ठ पुरुष को ( कविम् ) क्रान्तदर्शी, विद्वान् (भेषजम् ) रोगचिकित्सा में कुशल वैद्य और ( क्षत्रम् ) बल, वीर्य से सम्पन्न राज्यकर्त्ता क्षत्रिय, ( वसोधसम् ) दीर्घायु, बल, वीर्य, अन्न के धारक ( इन्द्रिम् ) राजा को ( पृथक् ) पृथक्-पृथक् नाना पदों पर ( यक्षत् ) नियुक्त करे । इन पदों पुरुषों में ( अतिच्छन्दसं छन्दः इन्द्रियम् ) क्रम से 'अति' शब्द से युक्त अतिधृति, अत्यष्टि, अतिशकरी और अतिजगती इन चार छन्दों के क्रम से ७६, ६८, ६० और ४८ अक्षरों के समान इतने इतने वर्षों का ( बृहत् इन्द्रियं ) विशाल ब्रह्मचर्यपालन, विद्याभ्यास व अनुभव और (ऋषभं गाम्) ऋषभ बैल के समान सर्वश्रेष्ठ पद को ( दधत् ) धारण करे । वे ही लोग (आज्यस्य व्यन्तु) राष्ट्र के ज्ञान ऐश्वर्य की वृद्धि और पालन करें । ( होत: यज) हे विद्वन् ! उन योग्य पुरुषों को अधिकार प्रदान कर ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अग्निः । अतिशक्वरी । पंचमः ॥
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