ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 146/ मन्त्र 6
आञ्ज॑नगन्धिं सुर॒भिं ब॑ह्व॒न्नामकृ॑षीवलाम् । प्राहं मृ॒गाणां॑ मा॒तर॑मरण्या॒निम॑शंसिषम् ॥
स्वर सहित पद पाठआञ्ज॑नऽगन्धिम् । सु॒र॒भिम् । ब॒हु॒ऽअ॒न्नाम् । अकृ॑षिऽवलाम् । प्र । अ॒हम् । मृ॒गाणा॑म् । मा॒तर॑म् । अ॒र॒ण्या॒निम् । अ॒शं॒सि॒ष॒म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आञ्जनगन्धिं सुरभिं बह्वन्नामकृषीवलाम् । प्राहं मृगाणां मातरमरण्यानिमशंसिषम् ॥
स्वर रहित पद पाठआञ्जनऽगन्धिम् । सुरभिम् । बहुऽअन्नाम् । अकृषिऽवलाम् । प्र । अहम् । मृगाणाम् । मातरम् । अरण्यानिम् । अशंसिषम् ॥ १०.१४६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 146; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
पदार्थ -
(आञ्जनगन्धिम्) रसाञ्जन गन्धवाली (सुरभिम्) सुगन्धयुक्त-सुगन्धवाली (अकृषिवलाम्) किसानों को अपेक्षित न करती हुई (बह्वन्नाम्) बहुत प्रकार के खाने योग्य वस्तुवाली (मृगाणां मातरम्) जंगली पशुओं की माता (अरण्यानिम् अशंसिषम्) अरण्यानी को प्रशंसित करता हूँ ॥६॥
भावार्थ - अरण्यानी में रसाञ्जन गन्ध और अन्य सुगन्धवाले पत्ते फूलवाले वृक्ष होते हैं और विना किसानों के बोए बहुत प्रकार के खाद्य पदार्थ-अन्न होते हैं, भाँति-भाँति के जंगली पशु भी उसमें होते हैं, ऐसे गुणोंवाली अरण्यानी प्रशंसनीय है ॥६॥
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