Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 56 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 56/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वृहदुक्थो वामदेव्यः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वा॒ज्य॑सि॒ वाजि॑नेना सुवे॒नीः सु॑वि॒तः स्तोमं॑ सुवि॒तो दिवं॑ गाः । सु॒वि॒तो धर्म॑ प्रथ॒मानु॑ स॒त्या सु॑वि॒तो दे॒वान्त्सु॑वि॒तोऽनु॒ पत्म॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒जी । अ॒सि॒ । वाजि॑नेन । सु॒ऽवे॒नीः । सु॒वि॒तः । स्तोम॑म् । सु॒वि॒तः । दिव॑म् । गाः॒ । सु॒वि॒तः । धर्म॑ । प्र॒थ॒मा । अनु॑ । स॒त्या । सु॒वि॒तः । दे॒वान् । सु॒वि॒तः । अनु॑ । पत्म॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाज्यसि वाजिनेना सुवेनीः सुवितः स्तोमं सुवितो दिवं गाः । सुवितो धर्म प्रथमानु सत्या सुवितो देवान्त्सुवितोऽनु पत्म ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वाजी । असि । वाजिनेन । सुऽवेनीः । सुवितः । स्तोमम् । सुवितः । दिवम् । गाः । सुवितः । धर्म । प्रथमा । अनु । सत्या । सुवितः । देवान् । सुवितः । अनु । पत्म ॥ १०.५६.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 56; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (वाजी-असि) हे बालक तू ज्ञानी है (वाजिनेन सुवेनीः) वीर्य से सुकान्तिमान् है (सुवितः-स्तोमम्) शोभनगुणसम्पन्न हुआ तू स्तुति के योग्य है (सुवितः-दिवं गाः) तू सुशिक्षित होकर मोक्ष को प्राप्त हो (सुवितः-धर्म) सुचरित्रवान् हुआ धर्मपरायण हो (प्रथमा सत्या-अनु) प्रमुख सत्य कर्मफलों को प्राप्त कर (सुवितः-देवान्) उत्तम विद्यावाला होता हुआ विद्वानों की संगति कर (सुवितः-अनु पत्म) सुविज्ञ हुआ-हुआ अनुकूल मार्गों को प्राप्त कर ॥३॥

    भावार्थ - बालक को चरित्रवान् बनाना, धर्मपरायण, विद्वान्, अपने से बड़े विद्वानों की संगति में रहना, यशस्वी बनाना, परमात्मा का उपासक इत्यादि उत्तम गुणों से सम्पन्न करना माता-पिता आदि का कर्त्तव्य है ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top