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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 84/ मन्त्र 6
    ऋषिः - मन्युस्तापसः देवता - मन्युः छन्दः - स्वराडार्चीजगती स्वरः - निषादः

    आभू॑त्या सह॒जा व॑ज्र सायक॒ सहो॑ बिभर्ष्यभिभूत॒ उत्त॑रम् । क्रत्वा॑ नो मन्यो स॒ह मे॒द्ये॑धि महाध॒नस्य॑ पुरुहूत सं॒सृजि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आऽभू॑त्या । स॒ह॒ऽजाः । व॒ज्र॒ । सा॒य॒क॒ । सहः॑ । बि॒भ॒र्षि॒ । अ॒भि॒ऽभू॒ते॒ । उत्ऽत॑रम् । क्रत्वा॑ । नः॒ । म॒न्यो॒ इति॑ । स॒ह । मे॒दी । ए॒धि॒ । म॒हा॒ऽध॒नस्य॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । स॒म्ऽसृजि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आभूत्या सहजा वज्र सायक सहो बिभर्ष्यभिभूत उत्तरम् । क्रत्वा नो मन्यो सह मेद्येधि महाधनस्य पुरुहूत संसृजि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽभूत्या । सहऽजाः । वज्र । सायक । सहः । बिभर्षि । अभिऽभूते । उत्ऽतरम् । क्रत्वा । नः । मन्यो इति । सह । मेदी । एधि । महाऽधनस्य । पुरुऽहूत । सम्ऽसृजि ॥ १०.८४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 84; मन्त्र » 6
    अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (वज्र) हे ओजरूप (सायक) विरोधियों के अन्त करनेवाले (अभिभूते) शत्रुओं के दबानेवाले (मन्यो) आत्मप्रभाव या स्वाभिमान ! (आभूत्या) समन्ताद् ऐश्वर्य से युक्त आत्मा के (सहजाः) साथ उत्पन्न (उत्तरं सह बिभर्षि) उच्चतर बल को धारण करता है (नः क्रत्वा सह) हमारे कर्म या प्रज्ञान के साथ (पुरुहूत) हे बहुत निमन्त्रणीय ! (महाधनस्य संसृजि) महैश्वर्यवाले संग्राम के संसर्ग में (मेदी) स्नेही-स्नेहसाधक प्रियकारी (एधि) हो ॥६॥

    भावार्थ - आत्मप्रभाव या स्वाभिमान आत्मा के साथ जन्मा है, उसका प्रिय करनेवाला है, संग्राम में ऐश्वर्य को जितानेवाला है ॥६॥

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