अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - वरुणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - सत्यानृतसमीक्षक सूक्त
बृ॒हन्नेषामधिष्ठा॒ता अ॑न्ति॒कादि॑व पश्यति। यस्ता॒यन्मन्य॑ते॒ चर॒न्त्सर्वं॑ दे॒वा इ॒दं वि॑दुः ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒हन् । ए॒षा॒म् । अ॒धि॒ऽस्था॒ता । अ॒न्ति॒कात्ऽइ॑व । प॒श्य॒ति॒ । य: । स्ता॒यत् । मन्य॑ते । चर॑न् । सर्व॑म् । दे॒वा: । इ॒दम् । वि॒दु॒: ॥१६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहन्नेषामधिष्ठाता अन्तिकादिव पश्यति। यस्तायन्मन्यते चरन्त्सर्वं देवा इदं विदुः ॥
स्वर रहित पद पाठबृहन् । एषाम् । अधिऽस्थाता । अन्तिकात्ऽइव । पश्यति । य: । स्तायत् । मन्यते । चरन् । सर्वम् । देवा: । इदम् । विदु: ॥१६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
विषय - राजा और ईश्वर का शासन।
भावार्थ -
राजा के गुप्तचर विभाग का वर्णन करते हुए परमेश्वर के राज्य का उपदेश करते हैं। (एषां) इन देवों का (अधिष्ठाता) अधिपति शासक स्वयं (बृहन्) बहुत बड़ा है, जो सबको (अन्तिकात् इव) ऐसे देख रहा है मानों उनके पास ही खड़ा है। तथा उस पुरुष को भी वह देख रहा है (यः) जो पुरुष (स्तायत्) अपने को गुप्त रूप से छुपकर (चरन्) विचरता हुआ, (मन्यते) जानता है, (इदं) यह सब बात (देवाः) देव अर्थात् राष्ट्र के अधिकारीगण जिस प्रकार जानते हैं उसी प्रकार समस्त विद्वान्गण भी (इदं सर्वं) इस सब सत्यं को (विदुः) जानते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। सत्यानृतान्वीक्षणसूक्तम्। वरुणो देवता। १ अनुष्टुप्, ५ भुरिक्। ७ जगती। ८ त्रिपदामहाबृहती। ९ विराट् नाम त्रिपाद् गायत्री, २, ४, ६ त्रिष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्।
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