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अथर्ववेद > काण्ड 5 > सूक्त 22

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  • अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 22/ मन्त्र 12
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - तक्मनाशनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - तक्मनाशन सूक्त

    तक्म॒न्भ्रात्रा॑ ब॒लासे॑न॒ स्वस्रा॒ कासि॑कया स॒ह। पा॒प्मा भ्रातृ॑व्येण स॒ह गच्छा॒मुमर॑णं॒ जन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तक्म॑न् । भ्रात्रा॑ । ब॒लासे॑न् । स्वस्रा॑ । कासि॑कया । स॒ह । पा॒प्मा । भ्रातृ॑व्येण । स॒ह । गच्छ॑ । अ॒मुम् । अर॑णम् । जन॑म् ॥२२.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तक्मन्भ्रात्रा बलासेन स्वस्रा कासिकया सह। पाप्मा भ्रातृव्येण सह गच्छामुमरणं जनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तक्मन् । भ्रात्रा । बलासेन् । स्वस्रा । कासिकया । सह । पाप्मा । भ्रातृव्येण । सह । गच्छ । अमुम् । अरणम् । जनम् ॥२२.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 22; मन्त्र » 12

    भावार्थ -
    हे (तक्मन्) ज्वर ! (भ्रात्रा) तुझे पुष्ट करने वाले (बलासेन) कफ़ और (स्वस्ना) भगिनी के समान कफ़ के साथ २ स्वयं आजाने वाली (कासिकया सह) खांसी के साथ और (भ्रातृव्येण) अपने परिपोषक भाई के समान कफ़ से उत्पन्न होने वाले अन्य (पाप्मा = पाप्माना) दु:खकारी, चर्म रोग के साथ तू (अमुम्) उस २ अर्थात् नाना प्रकार के (अरणं) मलिन, गन्दे (जनम्) पुरुष को (गच्छ) प्राप्त हो। अर्थात् तू नाना व्याधियों के सहित अस्वच्छ आदमी को चिपटता है। उस को खांसी, कफ़ और चर्मरोग-खुजली भी उत्पन्न करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृग्वङ्गिरसो ऋषयः। तक्मनाशनो देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। (१ भुरिक्) ५ विराट् पथ्याबृहती। चतुर्दशर्चं सूक्तम्॥

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