Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 15 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 15/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्र॒ सोमं॒ पिब॑ ऋ॒तुना त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः। म॒त्स॒रास॒स्तदोक॑सः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । सोम॑म् । पिब॑ । ऋ॒तुना॑ । आ । त्वा॒ । वि॒श॒न्तु॒ । इन्द॑वः । म॒त्स॒रासः॒ । तत्ऽओ॑कसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र सोमं पिब ऋतुना त्वा विशन्त्विन्दवः। मत्सरासस्तदोकसः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र। सोमम्। पिब। ऋतुना। आ। त्वा। विशन्तु। इन्दवः। मत्सरासः। तत्ऽओकसः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) जल का रश्मियों में मेध रूप से धारण करने वाले सूर्य तू ( ऋतुना ) वसन्त आदि प्रत्येक ऋतु के बल से ( सोमं ) जल का ( पिब ) पान करता है, उनको रश्मियों से सोख लेता है । और तब ही (तदोकस:) वे जल, अन्तरिक्ष, वायु, पृथिवी आदि नाना स्थानों पर आश्रय पाकर ( मत्सरासः ) प्राणियों को हर्ष और तृप्ति उत्पन्न करने वाले होकर ( इन्दवः ) द्रव रूप एवं गीला करने वाले रूप में रहते हैं ( त्वां ) तुझको ( विशन्तु ) प्राप्त होते हैं । तेरे पर आश्रित हैं । राजा के पक्ष में—हे (इन्द्र) राजन् ! (ऋतुना) महामात्य और राजसभा के सदस्यों के बल से तू ( सोमं पिब) ऋतु बल से सूर्य के समान राजपद का या ऐश्वर्य का भोगकर । हर्षजनक ( तदोकसः ) नाना देशों और महलों में रहने वाले ( इन्दवः ) चन्द्र के समान प्रजारञ्जनकारी विद्वान् और ऐश्वर्यवान् पुरुष ( त्वा विशन्तु ) मुझे प्राप्त हों, वे तेरे अधीन पात्र में जल के समान आश्रित होकर रहें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १=१२ मेधातिथिः काण्व ऋषिः ॥ देवता—ऋतवः । १ इन्द्रः । २ मरुतः । ३ त्वष्टा । ४ अग्निः । ५ इन्द्रः । ६ मित्रावरुणौ । ७—१० द्रविणोदाः। ११ अश्विनौ । १२ अग्निः । गायत्री ॥ षड्जः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top