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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 189/ मन्त्र 3
ऋषिः - सार्पराज्ञी
देवता - सार्पराज्ञी सूर्यो वा
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्रिं॒शद्धाम॒ वि रा॑जति॒ वाक्प॑तं॒गाय॑ धीयते । प्रति॒ वस्तो॒रह॒ द्युभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठत्रिं॒शत् । धाम॑ । वि । रा॒ज॒ति॒ । वाक् । प॒त॒ङ्गाय॑ । धी॒य॒ते॒ । प्रति॑ । वस्तोः॑ । अह॑ । द्युऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रिंशद्धाम वि राजति वाक्पतंगाय धीयते । प्रति वस्तोरह द्युभि: ॥
स्वर रहित पद पाठत्रिंशत् । धाम । वि । राजति । वाक् । पतङ्गाय । धीयते । प्रति । वस्तोः । अह । द्युऽभिः ॥ १०.१८९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 189; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 47; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 47; मन्त्र » 3
विषय - सूर्य के ३० धाम। अध्यात्म योजना।
भावार्थ -
जिस प्रकार सूर्य (प्रति वस्तोः) प्रति दिन (द्युभिः) कान्तियों से (त्रिंशद् धाम विराजति) तीसों स्थानों पर प्रकाशित होता है और जिस प्रकार कान्तियों से चन्द्र तीसों तिथि स्थानों पर प्रकाशित होता है उसी प्रकार जो (प्रति वस्तोः) निवास योग्य प्रत्येक देह में और निवास योग्य प्रत्येक लोक में व्यापक प्रभु (त्रिंशद् धाम विरजति) तीसों धाम प्रकाश करता है, चमकता है, उस (पतङ्गाय) सूर्य के समान गमनशील वा व्यापक के ज्ञान, और स्तुति के लिये (वाक् धीयते) वेदवाणी को धारण किया जाता है, उसी के लिये उत्तम स्तुति का प्रयोग होता है।
त्रिंशत्-धाम = (तीस धाम, स्थान) ज्योतिश्चक्र पर दिन रात्रि में तय होने वाले क्रान्तिवृत्त पर ६० अंश चिन्हित हैं जो दिन की तीस घड़ी वा मास की ३० तिथियों का निर्देश करते हैं। (२) अध्यात्म में भी जाग्रत् काल में उसी प्रकार देह में आत्मा की और जगत् में प्रभु की रक्षा को जानना चाहिये।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः सार्पराज्ञी। देवता—सार्पराज्ञी सूर्यो वा॥ छन्द:-१ निचृद् गायत्री। २ विराड् गायत्री। ३ गायत्री॥ तृचं सूक्तम्॥
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