ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 11/ मन्त्र 9
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - अग्निः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अग्ने॒ विश्वा॑नि॒ वार्या॒ वाजे॑षु सनिषामहे। त्वे दे॒वास॒ एरि॑रे॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । विश्वा॑नि । वार्या॑ । वाजे॑षु । स॒नि॒षा॒म॒हे॒ । त्वे इति॑ । दे॒वासः । आ । ई॒रि॒रे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने विश्वानि वार्या वाजेषु सनिषामहे। त्वे देवास एरिरे॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। विश्वानि। वार्या। वाजेषु। सनिषामहे। त्वे इति। देवासः। आ। ईरिरे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 11; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
विषय - पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ -
हे (अग्ने) विद्वन् ! हे नायक ! हम लोग (देवासः) धनादि ऐश्वर्यो और ज्ञानों की कामना करते हुए (त्वे) तेरे प्रति (ऐरिरे) शरण आते और प्रार्थना करते हैं और तेरे ही अधीन रह कर हम सब (वाजेषु) संग्रामों के अवसर पर वा ज्ञानों और ऐश्वर्यों के प्राप्त होने पर (विश्वानि) सब प्रकार के (वार्या) वरण करने योग्य उत्तम ऐश्वर्यों को (सनिषामहे) एक दूसरे को दान करें एवं परस्पर विभाग करके उपभोग करें। (२) परमेश्वर पक्ष में—विद्वान् जन तेरी स्तुति करते हैं, हम भी यज्ञों में समस्त वरणीय पदार्थ तेरे ही आश्रय होकर प्राप्त करें। इति दशमो वर्गः॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः– १, २, ५, ७, ८ निचृद्गायत्री॥ ३, ९ विराड् गायत्री । ४, ६ गायत्री॥
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