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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑ग्नी॒ आ ग॑तं सु॒तं गी॒र्भिर्नभो॒ वरे॑ण्यम्। अ॒स्य पा॑तं धि॒येषि॒ता॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । आ । ग॑तम् । सु॒तम् । गीः॒ऽभिः । नभः॑ । वरे॑ण्यम् । अ॒स्य । पा॒त॒म् । धि॒या । इ॒षि॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्राग्नी आ गतं सुतं गीर्भिर्नभो वरेण्यम्। अस्य पातं धियेषिता॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्राग्नी इति। आ। गतम्। सुतम्। गीःऽभिः। नभः। वरेण्यम्। अस्य। पातम्। धिया। इषिता॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (इन्द्राग्नी) इन्द्र और हे अग्ने ! हे ऐश्वर्यवन् हे ज्ञानवन् ! मेघ और सूर्य या वायु विद्युत् के समान जीवन, प्राण और अन्न और ज्ञान प्रकाश देने वाले गुरु जनो ! आप दोनों (आ गतम्) आइये। जिस प्रकार मेघ और सूर्य दोनों मिलकर (नभः) आकाश को (गीर्भिः) गर्जनादि मध्यम वाणियों से व्यापते हैं उसी प्रकार आप दोनों भी (गीर्भिः) उत्तम उपदेशों से (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (नभः) विद्या और योनि सम्बन्धों से बंधे (सुतम्) उत्पन्न हुए पुत्र वा शिष्य को (आ गतम्) प्राप्त होओ। और आप दोनों (धिया इषिता) ज्ञान और कर्म द्वारा उसको सन्मार्ग में प्रेरित करते हुए (अस्य) इसको (पातम्) पालन करो। (२) (सुतं) अभिषेकादि से स्नात राजा को इन्द्र और अग्नि, वायु और आग के समान बलवान् तेजस्वी पुरुषवर्ग प्राप्त हों। वे उत्तम वाणियों से उस वरण करने योग्य (नभः) राज्य प्रबन्ध में कुशल या व्यवस्थाओं से बद्ध, एवं एकाश के समान सर्वोपरि विराजमान उसको अपने ज्ञान और उद्योग से प्रेरते हुए उसका पालन करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः– १, ३, ५, ८, ९ निचद्वि रा गायत्री। २, ४, ६ गायत्री। ७ यवमध्या विराड् गायत्री च॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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