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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 13/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सुतम्भर आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अर्च॑न्तस्त्वा हवाम॒हेऽर्च॑न्तः॒ समि॑धीमहि। अग्ने॒ अर्च॑न्त ऊ॒तये॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्च॑न्तः । त्वा॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ । अर्च॑न्तः । सम् । इ॒धी॒म॒हि॒ । अग्ने॑ । अर्च॑न्तः । ऊ॒तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्चन्तस्त्वा हवामहेऽर्चन्तः समिधीमहि। अग्ने अर्चन्त ऊतये ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्चन्तः। त्वा। हवामहे। अर्चन्तः। सम्। इधीमहि। अग्ने। अर्चन्तः। ऊतये ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    भा०-हे (अग्ने) विद्वन् ! हे राजन् ! हम लोग ( अर्चन्तः अर्चन्तः ) निरन्तर तेरी सेवा शुश्रूषा करते हुए, ( त्वा हवामहे ) तुझे स्वीकार करते हैं, तुझे अपनाते हैं और ( त्वा समिधीमहि ) यज्ञाग्निवत् तुझे हम अच्छी प्रकार प्रदीप्त करते हैं । (ऊतये ) रक्षा और ज्ञान प्राप्त करने के लिये तेरा प्रकाश विस्तार करते, तुझे तेजस्वी बनाते, अपने हृदय में प्रज्वलितः करते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सुतम्भर आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री ।२, ६ गायत्री । ३ विराङ्गायत्री ॥ षडचं सूक्तम् ॥

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