Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 13 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 13/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सुतम्भर आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒ग्नेः स्तोमं॑ मनामहे सि॒ध्रम॒द्य दि॑वि॒स्पृशः॑। दे॒वस्य॑ द्रविण॒स्यवः॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नेः । स्तोम॑म् । म॒ना॒म॒हे॒ । सि॒ध्रम् । अ॒द्य । दि॒वि॒ऽस्पृशः॑ । दे॒वस्य॑ । द्र॒वि॒ण॒स्यवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेः स्तोमं मनामहे सिध्रमद्य दिविस्पृशः। देवस्य द्रविणस्यवः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नेः। स्तोमम्। मनामहे। सिध्रम्। अद्य। दिविऽस्पृशः। देवस्य। द्रविणस्यवः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 13; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    भा० - हम ( द्रविणस्यवः ) ऐश्वर्य और ज्ञान की कामना करने वाले होकर (दिवि-स्पृशः ) आकाश में व्यापक, सूर्यवत् तेजस्वी और ज्ञान प्रकाशमय प्रभु से सुखानन्द का अनुभव करने वाले, ( देवस्य ) ज्ञानप्रद सर्वप्रकाशक, तेजोमय, ( अग्नेः ) अग्निवत् तेजस्वी, पापशोधक, विद्वान् गुरु और राजा का ( सिध्रं ) सर्वकार्यसाधक एवं नित्य सिद्ध, ( स्तोमं ) स्तुति योग्य वचन और ज्ञानोपदेश का ( मनामहे ) मनन करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सुतम्भर आत्रेय ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री । २, ६ गायत्री । ३ विराङ्गायत्री ॥ षडचं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top