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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
इ॒त्था यथा॑ त ऊ॒तये॒ सह॑सावन्दि॒वेदि॑वे। रा॒य ऋ॒ताय॑ सुक्रतो॒ गोभिः॑ ष्याम सध॒मादो॑ वी॒रैः स्या॑म सध॒मादः॑ ॥४॥
स्वर सहित पद पाठइ॒त्था । यथा॑ । ते॒ । ऊ॒तये॑ । सह॑साऽवन् । दि॒वेऽदि॑वे । रा॒ये । ऋ॒ताय॑ । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो । गोभिः॑ । स्या॒म॒ । स॒ध॒ऽमादः॑ । वी॒रैः । स्या॒म॒ । स॒ध॒ऽमादः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इत्था यथा त ऊतये सहसावन्दिवेदिवे। राय ऋताय सुक्रतो गोभिः ष्याम सधमादो वीरैः स्याम सधमादः ॥४॥
स्वर रहित पद पाठइत्था। यथा। ते। ऊतये। सहसाऽवन्। दिवेऽदिवे। राये। ऋताय। सुक्रतो इति सुऽक्रतो। गोभिः। स्यामः। सधऽमादः। वीरैः। स्याम। सधऽमादः ॥४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
विषय - विद्वान् का उपदेश करने का कर्त्तव्य । उसका आदर सत्कार करने का उपदेश ।
भावार्थ -
भा०—हे ( सहसावन् ) शत्रु का पराजय करने वाले बल से सम्पन्न ! विद्वन् ! राजन् ! ( इत्था ) ऐसी रीति से (दिवे दिवे ) दिनों दिन तेरे (राये ) ऐश्वर्य को बढ़ाने के लिये ( ते ऋताय ) तेरे धन और ज्ञान की वृद्धि और प्राप्ति करने के लिये, ( ते ऊतये ) तेरी रक्षा करने के लिये ( यथा ) जैसे भी हो हम यत्न करें और (गोभिः) उत्तम वाणियों और भूमियों सहित होकर हे (सु-क्रतो) उत्तम कर्मशील ! ( सध-मादः स्याम ) हम सब एक साथ हर्ष युक्त हों और ( वीरैः ) वीरों और पुत्रों सहित हॉकर (सध-मादः स्याम) एक साथ हर्षित होकर रहें । इति द्वादशो वर्गः ॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रयस्वन्त अत्रय ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्द: - १, ३ विराड्नुष्टुप । २ निचृदनुष्टुप । ४ पंक्तिः ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम् ॥
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