ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 53/ मन्त्र 2
ऐतान्रथे॑षु त॒स्थुषः॒ कः शु॑श्राव क॒था य॑युः। कस्मै॑ सस्रुः सु॒दासे॒ अन्वा॒पय॒ इळा॑भिर्वृ॒ष्टयः॑ स॒ह ॥२॥
स्वर सहित पद पाठआ । ए॒तान् । रथे॑षु । त॒स्थुषः॑ । कः । शु॒श्रा॒व॒ । क॒था । य॒युः॒ । कस्मै॑ । स॒स्रुः॒ । सु॒ऽदासे॑ । अनु॑ । आ॒पयः॑ । इळा॑भिः । वृ॒ष्टयः॑ । स॒ह ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऐतान्रथेषु तस्थुषः कः शुश्राव कथा ययुः। कस्मै सस्रुः सुदासे अन्वापय इळाभिर्वृष्टयः सह ॥२॥
स्वर रहित पद पाठआ। एतान्। रथेषु। तस्थुषः। कः। शुश्राव। कथा। ययुः। कस्मै। सस्रुः। सुऽदासे। अनु। आपयः। इळाभिः। वृष्टयः। सह ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 53; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
विषय - रथी वीरों का प्रयाण,
भावार्थ -
भा०-( रथेषु तस्थुषः ) रथों पर विराजमान ( एतान् ) इन वीर विजिगीषु, वायुवत् शत्रुओं को उखाड़ने में समर्थ पुरुषों को (कः शुश्राव ) कौन अपनी आज्ञा सुनाता है ? और वे ( कथा ) किस प्रकार ( ययुः ) प्रयाण करें ? ( कस्मै अनु सस्रुः ) वे किसके अभ्युदय के लिये आगे बढ़े ? [ उत्तर ] वे ( आपयः ) बन्धु के तुल्य प्राप्त होकर ( सुदासे) उत्तम दानशील वृत्तिदाता स्वामी के लिये वा उत्तम भृत्यों के स्वामी के अधीन रहकर ( इडाभिः सह ) अन्नों सहित ( वृष्टयः इव ) जल वृष्टियों के तुल्य रथों पर विराजें, युद्ध में आगे बढ़ें और स्वामी के लिये शर-वर्षण, शत्रूच्छेदन करते हुए आगे बढ़ें।
टिप्पणी -
वृष्टिः ब्रचतेश्छेदनकर्मणः
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भा०- ( रथेषु तस्थुषः ) रथों पर विराजमान ( एतान् ) इन वीर विजिगीषु, वायुवत् शत्रुओं को उखाड़ने में समर्थ पुरुषों को (कः शुश्राव ) कौन अपनी आज्ञा सुनाता है ? और वे ( कथा ) किस प्रकार ( ययुः ) प्रयाण करें ? ( कस्मै अनु सस्रुः ) वे किसके अभ्युदय के लिये आगे बढ़े ? [ उत्तर ] वे ( आपयः ) बन्धु के तुल्य प्राप्त होकर ( सुदासे) उत्तम दानशील वृत्तिदाता स्वामी के लिये वा उत्तम भृत्यों के स्वामी के अधीन रहकर ( इडाभिः सह ) अन्नों सहित ( वृष्टयः इव ) जल वृष्टियों के तुल्य रथों पर विराजें, युद्ध में आगे बढ़ें और स्वामी के लिये शर-वर्षण, शत्रूच्छेदन करते हुए आगे बढ़ें।
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