ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 33/ मन्त्र 1
प्र सोमा॑सो विप॒श्चितो॒ऽपां न य॑न्त्यू॒र्मय॑: । वना॑नि महि॒षा इ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । सोमा॑सः । वि॒पः॒ऽचितः॑ । अ॒पाम् । न । य॒न्ति॒ । ऊ॒र्मयः॑ । वना॑नि । म॒हि॒षाःऽइ॑व ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सोमासो विपश्चितोऽपां न यन्त्यूर्मय: । वनानि महिषा इव ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सोमासः । विपःऽचितः । अपाम् । न । यन्ति । ऊर्मयः । वनानि । महिषाःऽइव ॥ ९.३३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 33; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
विषय - पवमान सोम। जंगल के महिषों वा जलतरंगों के समान, शासकों का कर्त्तव्य। पक्षान्तर में—प्राणों के बीच जीव की स्थिति।
भावार्थ -
(महिषाः इव वनानि) अरने भैंसे जिस प्रकार वनों में प्रवेश करते और (अपां ऊर्मयः न) जलों के तरंग जिस प्रकार (अपां यन्ति) गम्भीर जलों के बीच गमन करते हैं। उसी प्रकार (विपश्चितः) विद्वान् (सोमासः) शासक जन (अपां) आप्त प्रजाओं के बीच (प्र यन्ति) आगे बढ़ते हैं। (२) अध्यात्म में—(सोमासः) जीव गण प्राणों के बीच जीवन यापन करते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ५ गायत्री। ३, ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
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