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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 101
ऋषिः - त्रित आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
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ज꣣ज्ञानः꣢ स꣣प्त꣢ मा꣣तृ꣡भि꣢र्मे꣣धा꣡माशा꣢꣯सत श्रि꣣ये꣢ । अ꣣यं꣢ ध्रु꣣वो꣡ र꣢यी꣣णां꣡ चि꣢केत꣣दा꣢ ॥१०१॥

स्वर सहित पद पाठ

ज꣣ज्ञानः꣢ । स꣣प्त꣢ । मा꣣तृ꣡भिः꣢ । मे꣣धा꣢म् । आ । अ꣣शासत । श्रिये꣢ । अ꣣य꣢म् । ध्रु꣣वः꣢ । र꣣यीणा꣢म् । चि꣣केतत् । आ꣢ ॥१०१॥


स्वर रहित मन्त्र

जज्ञानः सप्त मातृभिर्मेधामाशासत श्रिये । अयं ध्रुवो रयीणां चिकेतदा ॥१०१॥


स्वर रहित पद पाठ

जज्ञानः । सप्त । मातृभिः । मेधाम् । आ । अशासत । श्रिये । अयम् । ध्रुवः । रयीणाम् । चिकेतत् । आ ॥१०१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 101
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 11;
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भावार्थ -

भा० = ( अयं ) = यह ( ध्रुवः ) = नित्य, कभी विचलित न होने वाला ( सप्त मातृभिः१  ) = सात माताओं  , सृष्टि के निर्माता पांच भूत, महत् अहंकार इनसे ( जज्ञानः ) = सृष्टि को प्रकट करता हुआ ( श्रिये ) = अपने विभूतिरूप शोभा या आश्रय के लिये ( मेधाम् ) उत्तम धारणा शक्ति  पर ( आशासत ) = वश करता है। वही परमेश्वर ( रयीणां ) = समस्त ऐश्वर्यों को ( आ चिकेतत् ) = भली प्रकार से जानता है ।

अध्यात्म में - यह ध्रुव आत्मा प्रमाता, इन्द्रियों से ज्ञान करता हुआ ( श्रिये ) = अपने कल्याण के लिये ( मेधाम् आशासत ) = मेधा बुद्धि को धारण करता है । ( रयीणाम् ) = सब प्राणों के वीर्यों को जानता है ।

सप्त मातरः = सात प्रमाता, ज्ञान साधन सात मुख्य प्राण हैं जिनको उपनिषत्कार सात ज्वाला, सात ऋषि, सात रथ, सात अश्व, सात अग्नि, सात वह्नि आदि नामों से पुकारते हैं । ( नासिकेत ) = अग्नि ध्रुव अग्नि है जिसका ज्ञान अध्रुव यज्ञ काण्ड से नहीं होता। "नह्मध्रुवै:  प्राप्यते हि ध्रुवं तत्" । का० उप० ।।  इनको ही सात छन्द, सात होता, सात सोम संस्थाओं के नामों से भी पुकारते हैं ।

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - त्रित :।

देवता - पवमानः। 

छन्दः - उष्णिक् । 

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