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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 406
ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - ककुप् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣢धा꣣꣬ ही꣢꣯न्द्र गिर्वण꣣ उ꣡प꣢ त्वा꣣ का꣡म꣢ ई꣣म꣡हे꣢ ससृ꣣ग्म꣡हे꣢ । उ꣣दे꣢व꣣ ग्म꣡न्त꣢ उ꣣द꣡भिः꣢ ॥४०६॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣡ध꣢꣯ । हि । इ꣣न्द्र । गिर्वणः । गिः । वनः । उ꣡प꣢꣯ । त्वा꣣ । का꣡मे꣢꣯ । ई꣣म꣡हे꣢ । स꣣सृग्म꣡हे꣢ । उ꣣दा꣢ । इ꣣व । ग्म꣡न्त꣢꣯ । उ꣣द꣡भिः꣢ ॥४०६॥


स्वर रहित मन्त्र

अधा हीन्द्र गिर्वण उप त्वा काम ईमहे ससृग्महे । उदेव ग्मन्त उदभिः ॥४०६॥


स्वर रहित पद पाठ

अध । हि । इन्द्र । गिर्वणः । गिः । वनः । उप । त्वा । कामे । ईमहे । ससृग्महे । उदा । इव । ग्मन्त । उदभिः ॥४०६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 406
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6;
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भावार्थ -

भा० = हे ( इन्द्र ) = आत्मन् ! हे ( गिर्वणः ) = वाणियों के एकमात्र पात्र ! ( उदा इव ) = जिस प्रकार जल ( उदभिः ) = अन्य जलों में ( ग्मन्त ) = मिल जाते हैं उसी प्रकार हम ( काम ) = अपनी कामनाओं द्वारा ( त्वा उप ईमहे ) = तेरे पास आते हैं और ( ससृग्महे ) = तेरे साथ मिल जाते हैं ।

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - नृमेध:।

देवता - इन्द्रः।

छन्दः - ककुप्।

स्वरः - ऋषभः। 

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