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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
    सूक्त - शन्तातिः देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पापमोचन सूक्त

    पञ्च॑ रा॒ज्यानि॑ वी॒रुधां॒ सोम॑श्रेष्ठानि ब्रूमः। द॒र्भो भ॒ङ्गो यवः॒ सह॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पञ्च॑ । रा॒ज्यानि॑ । वी॒रुधा॑म् । सोम॑ऽश्रेष्ठानि । ब्रू॒म॒: । द॒र्भ: । भ॒ङ्ग: । यव॑: । सह॑: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पञ्च राज्यानि वीरुधां सोमश्रेष्ठानि ब्रूमः। दर्भो भङ्गो यवः सहस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पञ्च । राज्यानि । वीरुधाम् । सोमऽश्रेष्ठानि । ब्रूम: । दर्भ: । भङ्ग: । यव: । सह: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 15

    भावार्थ -
    (वीरुधाम्) लताओं के (पञ्च) पांच (राज्यानि) राज्यों या श्रेणियों का हम (ब्रूमः) वर्णन करते हैं। (सोमश्रेष्ठानि) जिनमें सबसे श्रेष्ठ सोम है और शेष चार (दर्भः भङ्गः यवः सहः) दर्भ, भङ्ग = षण, यव और सहस्=सहमान ओषधि हैं। अथवा—(वीरुधां) नाना प्रकार से शत्रुओं को रोकने वालों के पांच राज्यों का वर्णन करते हैं जिनमें (सोमश्रेष्ठानि) सोम अर्थात् राजा ही सर्वश्रेष्ठ है। और शेष चार (दर्भः) शत्रुवाती, (भङ्गः) शत्रु के नगर तोड़ने वाले, (यवः) परे हटाने वाले और (सहः) उनको दबाने वाले पुरुष विद्यमान होते हैं। अथवा—लताओं के (पञ्च राज्यानि) राजा-वैद्य द्वारा प्रयुक्त पत्र, काण्ड, पुष्प, फल और मूल पांच अंगों का वर्णन करते है उन में सोम श्रेष्ठ है, दर्भ, भङ्ग, यव और सहस् ये ओषधियां उससे उतर कर हैं। (ते नः अंहसः मुञ्चन्तु) वे हमें पाप से मुक्त करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शंतातिर्ऋषिः। चन्द्रमा उत मन्त्रोक्ता देवता। २३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्, १–१७, १९-२२ अनुष्टुभः, १८ पथ्यापंक्तिः। त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥

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