अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 7/ मन्त्र 7
सूक्त - दुःस्वप्ननासन
देवता - याजुषी गायत्री
छन्दः - यम
सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
सुया॑मंश्चाक्षुष॥
स्वर सहित पद पाठसुऽया॑मन् । चा॒क्षु॒ष॒: ॥७.७॥
स्वर रहित मन्त्र
सुयामंश्चाक्षुष॥
स्वर रहित पद पाठसुऽयामन् । चाक्षुष: ॥७.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 7; मन्त्र » 7
विषय - शत्रुदमन।
भावार्थ -
हे (सुयामन्) उत्तम रीति से नियम व्यवस्था करने हारे राजन् ! हे चाक्षुष ! अपराधियों के अपराधों को भली प्रकार देखनेहारे ! (अहम्) मैं आथर्वण पुरोहित, न्यायाधीश. (इदम्) यह इस प्रकार से (अमुष्यायणे) अमुक गोत्र के (अमुष्याः पुत्रे) अमुक स्त्री के पुत्र पर (दुःस्वप्न्यं) दुःखप्रद मृत्यु दण्ड का (मृजे) प्रयोग करता हूं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यमऋषिः। दुःस्वप्ननाशनो देवता। १ पंक्तिः। २ साम्न्यनुष्टुप्, ३ आसुरी, उष्णिक्, ४ प्राजापत्या गायत्री, ५ आर्च्युष्णिक्, ६, ९, १२ साम्नीबृहत्यः, याजुपी गायत्री, ८ प्राजापत्या बृहती, १० साम्नी गायत्री, १२ भुरिक् प्राजापत्यानुष्टुप्, १३ आसुरी त्रिष्टुप्। त्रयोदशर्चं सप्तमं पर्यायसूक्तम्॥
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