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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 6

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 16
    सूक्त - नारायणः देवता - पुरुषः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त

    मू॒र्ध्नो दे॒वस्य॑ बृह॒तो अं॒शवः॑ स॒प्त स॑प्त॒तीः। राज्ञः॒ सोम॑स्याजायन्त जा॒तस्य॒ पुरु॑षा॒दधि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒र्धः। दे॒वस्य॑। बृ॒ह॒तः। अं॒शवः॑। स॒प्त। स॒प्त॒तीः। राज्ञः॑। सोम॑स्य। अ॒जा॒य॒न्त॒। जा॒तस्य॑। पुरु॑षात्। अधि॑ ॥६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूर्ध्नो देवस्य बृहतो अंशवः सप्त सप्ततीः। राज्ञः सोमस्याजायन्त जातस्य पुरुषादधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूर्धः। देवस्य। बृहतः। अंशवः। सप्त। सप्ततीः। राज्ञः। सोमस्य। अजायन्त। जातस्य। पुरुषात्। अधि ॥६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 16

    भावार्थ -
    (पुरुषात्) व्यापक परमेश्वर से (अधि जातस्य) उत्पन्न (मूर्ध्नः) सब से ऊंचे शिरके समान सर्वोपरि विद्यमान, (बृहतः) महान्, (देवस्य) प्रकाशमान, (सोमस्य) सर्वोत्पादक, सर्वप्रेरक, बीजमय (राज्ञः) अति प्रदीप्त हिरण्यगर्भ के घटक (सप्त सप्ततीः) ४९० चारसौ नब्बे (अंशवः) अंशु व्यापक सूक्ष्मतत्व (अजायन्त) उत्पन्न हुए। ब्रह्माण्ड और वीर्य के ४९० घटक सूक्ष्मतत्वों का विश्लेषण वैज्ञानिक करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पुरुषसूक्तम्। नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। अनुष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्।

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