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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 70

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 70/ मन्त्र 15
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-७०

    य एक॑श्चर्षणी॒नां वसू॑नामिर॒ज्यति॑। इन्द्रः॒ पञ्च॑ क्षिती॒नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । एक॑: । च॒र्ष॒णी॒नाम् । वसू॑नाम् । इ॒र॒ज्यति॑ ॥ इन्द्र॑: । पञ्च॑ । क्षि॒ती॒नाम् ॥७०.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य एकश्चर्षणीनां वसूनामिरज्यति। इन्द्रः पञ्च क्षितीनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । एक: । चर्षणीनाम् । वसूनाम् । इरज्यति ॥ इन्द्र: । पञ्च । क्षितीनाम् ॥७०.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 70; मन्त्र » 15

    भावार्थ -
    (यः) जो (एक) अकेला (वसूनाम्) प्रजा को अपने भीतर बसाने वाले लोकों और (चर्षणीनाम्) समस्त प्रजाओं को (एकः) अकेला ही (इरज्यति) अपने वश करता है। वह ही (पञ्च-क्षितीनाम्) पांचों क्षिति, जीवों के निवास पृथिवी आदि पांचों भूतों के (इन्द्रः) ऐश्वर्य का धारण करने हारा है। राजा के पक्ष में—जो अकेला समस्त राष्ट्र वासी प्रजाओं को वश करता है और वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र और निषाद इन पांचों प्रजाओं का (इन्द्रः) स्वामी है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—मधुच्छन्दाः। देवता—१,२,६-२० इन्द्रमरुतः, ३-५ मरुतः॥ छन्दः—गायत्री॥

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