अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 15
सूक्त - अथर्वाचार्यः
देवता - विराट्
छन्दः - विराड्गायत्री
सूक्तम् - विराट् सूक्त
तां बृह॒स्पति॑राङ्गिर॒सोधो॒क्तां ब्रह्म॑ च॒ तप॑श्चाधोक्।
स्वर सहित पद पाठताम् । बृह॒स्पति॑: । आ॒ङ्गि॒र॒स: । अ॒धो॒क् । ताम् । ब्रह्म॑ । च॒ । तप॑: । च॒ । अ॒धो॒क् ॥१३.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
तां बृहस्पतिराङ्गिरसोधोक्तां ब्रह्म च तपश्चाधोक्।
स्वर रहित पद पाठताम् । बृहस्पति: । आङ्गिरस: । अधोक् । ताम् । ब्रह्म । च । तप: । च । अधोक् ॥१३.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 4;
मन्त्र » 15
विषय - विराट् गौ से माया, स्वधा, कृषि, सस्य, ब्रह्म और तपका दोहन।
भावार्थ -
(सा उद् अक्रामत्) वह उपर उठी। (सा सप्तऋषीन् आगच्छत्) वह सात ऋषियों के पास आई। (तां सप्त ऋषयः उपाह्वयन्त ब्रह्मण्वति एहि इति) उन सात ऋषियों ने हे ब्रह्मण्वति ! आओ इस प्रकार आदरपूर्वक बुलाया। (तस्याः सोमः राजा वत्सः आसीत्) उसका सोम राजा वत्स था। (छन्दः पानम्) छन्दस् पात्र था। (तां बृहस्पतिः आंगिरसः अधोक्) उसको आंगिरस बृहस्पति ने दोहन किया। (तां ब्रह्म च तपः च अधोक्) उसने ब्रह्मज्ञान, वेद और तपश्चर्या का दोहन किया। (तत्) उस (ब्रह्म च तपः च) ब्रह्मज्ञान और तप के आधार पर (सप्त ऋषयः उपजीवन्ति) सात ऋषिगण प्राण धारण करते हैं। (य एवं वेद) जो इस रहस्य को जानता है वह (ब्रह्मवर्चसी उपजीवनीयः भवति) ब्रह्मवर्चस्वी और अन्यों को जीविका देने में समर्थ होता है।
विराट्=ब्रह्मण्वती अर्थात् ब्रह्मज्ञानमयी होकर ऋषियों को प्राप्त हुई उस का सोम राजा ज्ञानपिपासु वत्स के समान है। वेदवक्ता ब्रह्मणस्पति या बृहस्पति उसका दोहन करता है। ब्रह्मज्ञान, वेद और तप उसका दोहन का सार है। ऋषि उसी पर जीते हैं, दोहन का पात्र ‘छन्द’ वेद है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वाचार्य ऋषिः। विराड् देवता। १, ५ साम्नां जगत्यौ। २,६,१० साम्नां बृहत्यौ। ३, ४, ८ आर्च्यनुष्टुभः। ९, १३ चतुष्पाद् उष्णिहौ। ७ आसुरी गायत्री। ११ प्राजापत्यानुष्टुप्। १२, १६ आर्ची त्रिष्टुभौ। १४, १५ विराङ्गायत्र्यौ। षोडशर्चं पर्यायसूक्तम्॥
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