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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 23
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    अ॒पादे॑ति प्रथ॒मा प॒द्वती॑नां॒ कस्तद्वां॑ मित्रावरु॒णा चि॑केत। गर्भो॑ भा॒रं भ॑र॒त्या चि॑दस्या ऋ॒तं पिप॑र्त्यनृ॑तं॒ नि पा॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पात् । ए॒ति॒ । प्र॒थ॒मा । प॒त्ऽवती॑नाम् । क: । तत् । वा॒म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒ । आ । चि॒के॒त॒ । गर्भ॑: । भा॒रम् । भ॒र॒ति॒ । आ । चि॒त् । अ॒स्या॒: । ऋ॒तम् । पिप॑र्ति । अनृ॑तम् । नि । पा॒ति॒ ॥१५.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपादेति प्रथमा पद्वतीनां कस्तद्वां मित्रावरुणा चिकेत। गर्भो भारं भरत्या चिदस्या ऋतं पिपर्त्यनृतं नि पाति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपात् । एति । प्रथमा । पत्ऽवतीनाम् । क: । तत् । वाम् । मित्रावरुणा । आ । चिकेत । गर्भ: । भारम् । भरति । आ । चित् । अस्या: । ऋतम् । पिपर्ति । अनृतम् । नि । पाति ॥१५.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 23

    भावार्थ -
    (पद्वतीनां प्रथमा) पूर्वोक्त एकपदी, द्विपदी, चतुष्पदी आदि ब्रह्मशक्तियों में से सबसे प्रथम विद्यमान, अव्याकृत ब्रह्मशकि (अपाद्) ‘अपात्’ अविज्ञेय रूप, अमात्र है। वही परम ‘तुरीय पद’ कहाती है। हे (मित्रावरुणौ) मित्र और वरुण, प्राण और अपान ! (वां कः) तुम दोनों में से कौन (तत्) उस ‘अपात्’ ब्रह्मशक्ति के स्वरूप को (चिकेत) जानता है। (अस्याः) इसके (गर्भः) गर्भ में स्थित तेजोमय स्वरूप ज्ञान या इसका धारण करनेहारा ब्रह्म ईश्वर (भारम्) समस्त विश्व के भार को या भरणपोषण के सामर्थ्य को (आभरति चित्) निश्चय से धारण करता है। और वही परमेश्वर (ऋतम्) सत्य ज्ञान और अनन्त बल या जगत् को (पिपर्त्ति) पूर्ण रूप से धारण या पालन करता है और (अमृतम्) असत्य, अज्ञान अन्धकार का नाश करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। गौः, विराड् आत्मा च देवताः। १, ७, १४, १७, १८ जगत्यः। २१ पञ्चपदा शक्वरी। २३, २४ चतुष्पदा पुरस्कृतिर्भुरिक् अतिजगती। २, २६ भुरिजौ। २, ६, ८, १३, १५, १६, १९, २०, २२, २५, २७, २८ त्रिष्टुभः। अष्टाविंशर्चं सूक्तम्॥

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